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Saturday, April 28, 2012

आँखों का दिया बुझा मुझमे रात रख गई

निगाहों को नम करके जज़्बात रख गई,
छुपते-छुपाते दिल में सारी बात रख गई,
इस डर से कहीं सारे भेद खुल ना जाएँ,
आँखों का दिया बुझा मुझमे रात रख गई,
पहले जखम दिया बाद मरहम भी लगाया,
फिर जानबूझ कर जख्मो पर हाँथ रख गई,
कि साथ रह रही थी जिस छत के नीचे उसपर ,
बादलों से चुरा कर बरसात रख गई.....

4 comments:

  1. Reena MauryaApril 30, 2012 at 7:34 PM

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...

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    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 12, 2012 at 11:28 AM

      शुक्रिया रीना जी

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  • संजय भास्करOctober 11, 2012 at 5:57 PM

    बहुत सुन्दरता से वर्णन किया है....बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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    Replies
    1. "अनंत" अरुन शर्माOctober 12, 2012 at 11:28 AM

      शुक्रिया संजय भाई

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