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Friday, October 25, 2013

ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
....................................................

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,

निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,

दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,

चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,

बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...

14 comments:

  1. प्रवीण पाण्डेयOctober 25, 2013 at 12:52 PM

    सुन्दर संरचना

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  2. Kuldeep ThakurOctober 25, 2013 at 1:05 PM

    आप की इस खूबसूरत रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
    आप की ये सुंदर रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को कुछ पंखतियों के साथ ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक गयी है... आप का भी इस प्रसारण में स्वागत है...आना मत भूलना...
    सूचनार्थ।

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  3. कालीपद प्रसादOctober 25, 2013 at 1:17 PM

    बहुत उम्दा ग़ज़ल अरुण जी |
    नई पोस्ट मैं

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  4. रविकरOctober 25, 2013 at 4:35 PM

    बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार -

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  5. Reena MauryaOctober 25, 2013 at 6:49 PM

    बहुत ही भावपूर्ण गजल...

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  6. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाOctober 25, 2013 at 7:26 PM

    बहुत उम्दा गजल ,,,!

    RECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.

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  7. रूपचन्द्र शास्त्री मयंकOctober 26, 2013 at 5:29 AM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (26-10-2013)
    "ख़ुद अपना आकाश रचो तुम" : चर्चामंच : चर्चा अंक -1410 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. दे४व्दुत्तप्रसूनOctober 26, 2013 at 9:31 AM

    चरिवेती! पूरे परिवेश की यही दशा है !!

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  9. दे४व्दुत्तप्रसूनOctober 26, 2013 at 9:34 AM

    अच्छी प्रस्तुति ! सम्पूर्ण विश्व की यही मनोदशा है !

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  10. Manjusha pandeyOctober 26, 2013 at 2:42 PM

    सुन्दर रचना...

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  11. shorya MalikOctober 27, 2013 at 3:30 PM

    बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
    किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
    बहुत उम्दा अरुण भाई

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  12. राजीव कुमार झाOctober 27, 2013 at 3:32 PM

    बहुत सुन्दर .
    नई पोस्ट : कोई बात कहो तुम

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  13. दिगम्बर नासवाOctober 29, 2013 at 4:35 PM

    बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
    किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
    खूबसूरत शेर है इस लाजवाब गज़ल का ... हर शेर जादू बिखरा रहा है ....

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  14. सरिता भाटियाNovember 9, 2013 at 6:08 PM

    बहुत बढ़िया अरुण

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