अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....
अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.
तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....
पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम आराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो.
तुम पूजा हो तुम्हीं ध्यान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....
बहुत खूब ...
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
:-)
खुबसूरत रचना के लिए हार्दिक बधाई अरुण
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
प्रत्युत्तर देंहटाएंआभार प्रिय अरुण-
नमस्कार !
प्रत्युत्तर देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [11.11.2013]
चर्चामंच 1426 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
सादर
सरिता भाटिया
अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो ......बेहद सुन्दर ...अरुण जी..
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति..!
प्रत्युत्तर देंहटाएंRECENT POST -: कामयाबी.
प्रिय तुम प्राण समान हो ...........अहाहा इतनी सुंदर अभिव्यक्ति के लिए मित्र अरून शर्मा जी आपको अनंत अनंत बधाई ..। ...प्रियतमाओं को निहाल कर देने वाली .......एकदम ..रोमांटिकियाइए जी
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत अच्छा भावपूर्ण रचना !
प्रत्युत्तर देंहटाएंनई पोस्ट काम अधुरा है
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प्रत्युत्तर देंहटाएंbehud umda or pyar se bhara pyara udgar diye aapne....
प्रत्युत्तर देंहटाएंतुम ही तुम हो ... प्रेम को समर्पित भाव ... प्रेम भरी अभिव्यक्ति अरुण जी ...
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