आँखों से जो हंसा तो सागर छलक गया,
सारा का सारा गम फिर मेरा झलक गया,
सारा का सारा गम फिर मेरा झलक गया,
ना पलटी, ना ही देखा, इक भी बार मुझे,
मैं पीछे - पीछे उसके, मीलों तलक गया,
मेरी चिल्लाहट, ना मेरी आवाज सुनी,
धीरे - धीरे भारी, हो मेरा हलक गया,
धीरे - धीरे भारी, हो मेरा हलक गया,
इतना कुछ, पल दो पल में, मेरे संग हुआ,
बारिश ही बारिश, भर मुझमे फलक गया,
बारिश ही बारिश, भर मुझमे फलक गया,
कुछ ऐसे दोस्तों, थी मेरी तकदीर जली,
चिंगारी भड़की सीने में, मैं बलक* गया.
चिंगारी भड़की सीने में, मैं बलक* गया.
*बलक = उबलना
उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत-२ शुक्रिया आदरणीय रविकर सर
हटाएंबेवफाई की वेदना
प्रत्युत्तर देंहटाएंझलक रही है रचना में...
संवेदनशील रचना...
शुक्रिया रीना जी
हटाएंवाह जी वाह !
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत अच्छे बलके हो
बलकना समझा गये
अपना तो उबल ही रहे थे
हमको भी उबलना बता गये !
वाह सुशील सर यह पहला कमेन्ट है आप मेरे ब्लॉग पर, आपकी सराहना के लिए और आशीर्वाद के लिए तहे दिल से शुक्रिया
हटाएंकुछ ऐसे दोस्तों, थी मेरी तकदीर जली,
प्रत्युत्तर देंहटाएंचिंगारी भड़की सीने में, मैं बलक* गया. बलक बलक प्रेम अगन में झुलस गया वाह भाई! बहुत बढ़िया अशआर तमाम के तमाम कोई भी शैर भर्ती का नहीं सभी दिल से बलते हुए निकले हैं.आग बल रही है भाई इशक(इश्क) की बलने दो ,जा रही है रूठ के ,जाने दो ,कुछ दे कर ही गई ,अपना क्या ले गई ...
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?
शुक्रिया वीरेंद्र भाई
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