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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

गम मेरा झलक गया

आँखों से जो हंसा तो सागर छलक गया,
सारा का सारा गम फिर मेरा झलक गया,

ना पलटी, ना ही देखा, इक भी बार मुझे,
मैं पीछे - पीछे उसके, मीलों तलक गया,
 
मेरी चिल्लाहट, ना मेरी आवाज सुनी,
धीरे - धीरे भारी, हो मेरा हलक गया,
 
इतना कुछ, पल दो पल में, मेरे संग हुआ,
बारिश ही बारिश, भर मुझमे फलक गया,
 
कुछ ऐसे दोस्तों, थी मेरी तकदीर जली,
चिंगारी भड़की सीने में, मैं बलक* गया.


*बलक = उबलना 

12 टिप्‍पणियां:

  1. रविकर फैजाबादी6 सितंबर 2012 को 7:00 pm

    उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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    1. अरुन शर्मा8 सितंबर 2012 को 11:14 am

      बहुत-२ शुक्रिया आदरणीय रविकर सर

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  • Reena Maurya6 सितंबर 2012 को 7:07 pm

    बेवफाई की वेदना
    झलक रही है रचना में...
    संवेदनशील रचना...

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    1. अरुन शर्मा8 सितंबर 2012 को 11:14 am

      शुक्रिया रीना जी

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  • सुशील7 सितंबर 2012 को 8:23 am

    वाह जी वाह !
    बहुत अच्छे बलके हो
    बलकना समझा गये
    अपना तो उबल ही रहे थे
    हमको भी उबलना बता गये !

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    1. अरुन शर्मा8 सितंबर 2012 को 11:15 am

      वाह सुशील सर यह पहला कमेन्ट है आप मेरे ब्लॉग पर, आपकी सराहना के लिए और आशीर्वाद के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  • Virendra Kumar Sharma7 सितंबर 2012 को 10:56 am

    कुछ ऐसे दोस्तों, थी मेरी तकदीर जली,
    चिंगारी भड़की सीने में, मैं बलक* गया. बलक बलक प्रेम अगन में झुलस गया वाह भाई! बहुत बढ़िया अशआर तमाम के तमाम कोई भी शैर भर्ती का नहीं सभी दिल से बलते हुए निकले हैं.आग बल रही है भाई इशक(इश्क) की बलने दो ,जा रही है रूठ के ,जाने दो ,कुछ दे कर ही गई ,अपना क्या ले गई ...

    शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
    क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?

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    1. अरुन शर्मा8 सितंबर 2012 को 11:16 am

      शुक्रिया वीरेंद्र भाई

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  • ई. प्रदीप कुमार साहनी7 सितंबर 2012 को 1:25 pm

    सुन्दर रचना |

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    1. अरुन शर्मा8 सितंबर 2012 को 11:16 am

      धन्यवाद साहनी साहब

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  • संजय भास्कर10 सितंबर 2012 को 8:15 pm

    भावनाओं को बहुत सुन्दरता से पिरोया है आपने..

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    1. अरुन शर्मा12 सितंबर 2012 को 11:29 am

      शुक्रिया संजय भाई

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