वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,
जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,
नयन की कटारी ने दिल को छुआ है,
नहीं बच सकेगा जतन लाख कर ले,
नसीबा ने खेला सदा ही जुआ है,
न बरसात ठहरी न मैं रात सोया,
कि रह रह के छप्पर सुबह तक चुआ है,
सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार2/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
प्रत्युत्तर देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति |
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुभकामनायें -
बहुत ही बेहतरीन और भावपूर्ण ग़ज़ल की प्रस्तुति,अतिसुन्दर मित्रवर.
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
प्रत्युत्तर देंहटाएंआप की ये रचना 05-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना।
सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
sundar gajal , badhai arun ji
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
प्रत्युत्तर देंहटाएंदुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .
...सच कहा आपने सुख भी घर देखकर आता है घर में ..
बहुत उम्दा गजल,,,,अरुन जी,,,
प्रत्युत्तर देंहटाएंRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
आज आपके ब्लॉग पर आने का थोड़ा सा समय मिला है ...
प्रत्युत्तर देंहटाएंये गज़ल ग़जब की हैं। सभी शेर बढ़िया हैं
पधारिये : किसान और सियासत
beshak ak behatareen gazal
प्रत्युत्तर देंहटाएंअनंत जी बहुत ही बढ़िया रचना ...
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
प्रत्युत्तर देंहटाएंदुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .--अनंत जी बहुत ही सच कहा आपने
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Wah.. Sundar ghazal Anant ji.. Congrats :)
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