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Thursday, September 27, 2012

छोड़ा है मुझको तन्हा बेकार बनाके

छोड़ा है मुझको तन्हा --- बेकार बनाके,
मेरे ही गम का मुझको - औज़ार बनाके, 


तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
यादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके,
 

दिल में तेरा ही, तेरा ही -- प्यार भरा है,
पूजी है तेरी मूरत ----- सौ बार बनाके,


घोटाला - है रिश्वत - भ्रस्ठाचार बढा है,
जनता की बिगड़ी हालत, सरकार बनाके,
 

धड़कन को मेरी साँसों, को काम यही है,
जख्मों को रक्खा मुझमें, त्योहार बनाके,
 

समझे जो दुनियादारी -- वो दौर नहीं है,
खबरें उल्टी सीधी की --अखबार बनाके,
 

आँखों का पहले जैसा -- अंदाज़ नहीं है,
कर बैठी हैं अश्कों का-- व्यापार बनाके..

34 comments:

  1. संध्या शर्माSeptember 27, 2012 at 11:06 AM

    बहुत सुन्दर रचना... हालत ही ऐसे हैं आजकल के क्या करें....

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 11:07 AM

      शुक्रिया संध्या जी

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  • बढ़िया तारतम्य |
    इन्हें बर्दाश्त करें-

    चले कार-सरकार की, होय प्रेम-व्यापार |
    औजारों से खोलते, पेंच जंग के चार |
    पेंच जंग के चार, चूड़ियाँ लाल हुई हैं |
    यह ताजा अखबार, सफेदी छड़ी मुई है |
    चश्मा मोटा चढ़ा, रास्ता टूटा फूटा |
    पत्थर बड़ा अड़ा, यहीं पर गाड़ू खूटा ||

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 11:39 AM

      सर आप ये दोहे मुझपर यूँ बरसाते रहा कीजिये बहुत अच्छा लगता है. शुक्रिया

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  • शारदा अरोराSeptember 27, 2012 at 11:36 AM

    तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
    यादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके,
    ये शेर सब से बढ़िया लगा ..

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 11:39 AM

      बहुत-२ शुक्रिया शारदा जी

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  • उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 11:42 AM

      शुक्रिया सर

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  • Dheerendra singh BhadauriyaSeptember 27, 2012 at 12:55 PM

    अरुन जी ,बहुत उम्दा प्रसंसनीय प्रस्तुति,,,

    RECENT POST : गीत,

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 12:57 PM

      धीरेन्द्र सर सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  • संगीता स्वरुप ( गीत )September 27, 2012 at 1:04 PM

    बहुत उम्दा गज़ल

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 1:14 PM

      शुक्रिया आदरेया संगीता जी

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  • वाह ... बहुत ही बढिया लिखा है ...

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 3:49 PM

      तहे दिल से शुक्रिया सदा जी आपका

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  • संजय भास्करSeptember 27, 2012 at 4:42 PM

    आँखों का पहले जैसा -- अंदाज़ नहीं है,
    कर बैठी हैं अश्कों का-- व्यापार बनाके
    ....... हालत ही ऐसे हैं आजकल अरुन जी

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 4:43 PM

      सही कह रहे हैं संजय भाई बहुत -२ शुक्रिया

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  • उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 27, 2012 at 5:41 PM

      रविकर सर तहे दिल से शुक्रिया

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  • Virendra Kumar SharmaSeptember 28, 2012 at 8:17 AM

    घोटाला - है रिश्वत - भ्रस्ठाचार (भ्रष्टाचार )बढा है, .......भ्रष्टाचार
    जनता की बिगड़ी हालत, सरकार बनाके,

    धड़कन को मेरी साँसों, को काम यही है,
    जख्मों को रक्खा मुझमे(मुझमें ), त्योहार बनाके, ..........मुझमें

    बहुत सशक्त रचना है .युवा कवि भविष्य के लिए अपार संभावनाएं छिपाए है अपनी कलम में .

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 28, 2012 at 10:45 AM

      आदरणीय वीरेन्द्र सर आपका तहे दिल से शुक्रिया आपने मेरी गलती का एहसास दिलाया बस यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये ठीक कर दिया है सर

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  • क्या मिल गया आखिर तुझको
    मुझको बस एक उल्लू बनाके !!

    बहुत सुंदर !

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 28, 2012 at 10:42 AM

      वाह सुशील सर क्या बात है शुक्रिया मेहरबानी

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  • समझे जो दुनियादारी -- वो दौर नहीं है,
    खबरें उल्टी सीधी की --अखबार बनाके,

    ....आज के यथार्थ की बहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति...

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 29, 2012 at 10:51 AM

      शुक्रिया कैलाश सर

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    Reply
  • काव्य संसारSeptember 28, 2012 at 10:32 PM

    बहुत ही सुंदर रचना |
    इस समूहिक ब्लॉग में पधारें और हमसे जुड़ें |
    काव्य का संसार

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 29, 2012 at 10:57 AM

      बहुत-२ शुक्रिया

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  • तड़पाया उसने मुझको, हर रोज़ सजा दी,
    यादों को भर है डाला -- हंथियार बनाके,

    बहुत अच्छा लिखा है ...
    शुभकामनायें ...

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    1. "अनंत" अरुन शर्माSeptember 29, 2012 at 11:00 AM

      अनुपमा जी आपका स्नेह टिपण्णी के रूप में मिला शुक्रिया

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