वो खुद से मुझको जुदा कर भूल गई,
नम नैना मेरे, ---- उम्र भर संग रहे,
जुल्मी मुझको, गुदगुदा कर भूल गई,
मुझमे कायम, यूँ दर्द-गम-जखम रहा,
खुद को मेरा वो,--- खुदा कर भूल गई,
चाहा जब तक खूब मुझको प्यार किया,
फिर वो अपना,-- फायदा कर भूल गई,
मांगे मैंने फूल------ उससे प्यार भरे,
बोझा काँटों का,---- लदा कर भूल गई....
सहज अभिव्यक्ति
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुक्रिया रश्मि जी
हटाएंअच्छी रचना।
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुक्रिया संदीप जी
हटाएंचाहत की कीमत मिली, अहा हाय हतभाग ।
प्रत्युत्तर देंहटाएंइक चितवन देती चुका, तड़पूं अब दिन रात ।
तड़पूं अब दिन रात, आँख पर आंसू छाये ।
दिल में यह तश्वीर, गजब हलचलें मचाये ।
देती कंटक बोझ, इसी से पाई राहत ।
कर्म कर गई सोझ, कोंच के नोचूं चाहत ।।
वाह सर क्या बात आपके दोहों का कोई जवाब नहीं
हटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुक्रिया सर
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