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Wednesday, August 22, 2012

सूखते मेरे लबों को भीगता सावन बना

जान का सारा ज़माना आज है दुश्मन बना,
प्यार तेरा वाकई दिन रात का उलझन बना,

डूब कर आराम कर है नींद आँखों में भरी,
टूट ख्वाबों से बड़ा ही दूर का बंधन बना,

चुन लिया मैंने तुझे, अब धडकनों का खुदा,
पूजने को दिलनशीं इक बार तुझको मन बना,

बात इतनी सी नहीं जो बोल दूँ इक सांस में,
साथ तेरा दो पलों का अब मिरा जीवन बना,

घोलकर अपनी निगाहों से पिला गम घूंट भर,
सूखते मेरे लबों को भीगता सावन बना...............

4 comments:

  1. Reena MauryaAugust 22, 2012 at 7:44 PM

    बहुत सुन्दर रचना...
    वैसे तो सभी पंक्तिया बेहतरीन है..
    घोलकर अपनी निगाहों से पिला गम घूंट भर,
    सूखते मेरे लबों को भीगता सावन बना....
    पर ये तो लाजवाब है..
    :-)

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  2. dheerendraAugust 22, 2012 at 11:34 PM

    बहुत सुंदर,,,,वाह क्या बात है,,,,अरुण शर्मा जी,,,

    RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
    RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,

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  3. दिलबाग विर्कAugust 23, 2012 at 8:52 AM

    आपकी पोस्ट कल 23/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें

    चर्चा - 980 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  4. दिगम्बर नासवाAugust 23, 2012 at 4:17 PM

    बात इतनी सी नहीं जो बोल दूँ इक सांस में,
    साथ तेरा दो पलों का अब मिरा जीवन बना, ,...

    उनका साथ जब जीवन बन जाए तो इतनी आसानी से कहाँ बोला जा सकता है ... लाजवाब ...

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