Pages

आइये आपका हृदयतल से हार्दिक स्वागत है

Monday, July 2, 2012

समय की मजबूरियाँ

बह रहीं समय की धारा में, मजबूरियाँ थीं,
दो दिल एक थे मगर ज़ज्बातों में दूरियाँ थीं,
फ़साने बुनते रहे, नए - नए नज़रों के तले,
और जिगर पर चल रही, चाकू - छूरियाँ थीं,
हालात भी मौसम की तरह रुख बदलते थे,
माथे पर शिकन और चेहरे पर झुर्रियाँ थीं, 
कहीं मातम था, बहते अश्क थे गालों पर,
कहीं ख़ुशी के माहौल में तल रही पूरियाँ थीं.....

2 comments:

  1. दिगम्बर नासवाJuly 3, 2012 at 1:27 PM

    ये जमाने के अलग अलग रंग हैं जो समय दिखाता है ...

    ReplyDelete
  2. अरुन शर्माJuly 4, 2012 at 11:24 AM

    बिलकुल दिगम्बर जी

    ReplyDelete
Add comment
Load more...

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर