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Wednesday, July 25, 2012

आदमी

आदमी को कर रहा है, तंग आदमी,



सभ्यता सीखा गया बे-ढंग आदमी,



कोशिशें कर-2 हुआ है, कामयाब अब,



आसमां में भर रहा है, रंग आदमी,



देख के लो हो गयीं, हैरान अंखियाँ,



ओढ़ बैठा है, बुरा फिर अंग आदमी,



सोंच के ना काम कोई आज तक किया,



जी रहा इन्हीं आदतों के, संग आदमी,



दूसरों के दुःख को हरदिन, बढाता था,



हाल अपना जान अब है, दंग आदमी............

5 comments:

  1. रविकर फैजाबादीJuly 25, 2012 at 1:29 PM

    अंग अंग से हो गया है भंग आदमी |
    खुद से ही लड़ रहा है इक जंग आदमी ||

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  2. दिगम्बर नासवाJuly 25, 2012 at 1:44 PM

    बहुत खूब ... आदमी की रंगत को पहचाना है आपने ... जिया है इन शेरों में ...

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  3. अरुन शर्माJuly 25, 2012 at 1:49 PM

    आदरणीय रविकर जी एवं दिगंबर जी बहुत-बहुत शुक्रिया.

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  4. expressionJuly 26, 2012 at 11:52 AM

    बहुत बढ़िया अरुण जी
    अनु

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  5. अरुन शर्माJuly 27, 2012 at 5:18 PM

    आदरणीय रविकर जी दिगंबर जी एवं आदरणीया अनु जी, स्नेह के लिए तहे दिल से अभिनन्दन.....

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