पलटके हंस गई जबसे,नज़र में बस गई तबसे,
समंदर से निकलती लहरें,किनारा रस गई जैसे,
दिल से खेल खेला है, लगा उल्फत का मेला है,
याद जब तेरी आई तो सांसे फंस गई फिरसे,
बड़े शातिर खिलाडी हैं, हम समझे अनाड़ी हैं,
देखकर मुझको राहों में नज़रें फेर गई मुझस.....
समंदर से निकलती लहरें,किनारा रस गई जैसे,
दिल से खेल खेला है, लगा उल्फत का मेला है,
याद जब तेरी आई तो सांसे फंस गई फिरसे,
बड़े शातिर खिलाडी हैं, हम समझे अनाड़ी हैं,
देखकर मुझको राहों में नज़रें फेर गई मुझस.....
No comments:
Post a Comment
आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर