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Saturday, June 23, 2012

उसके हजारों बहाने

वो आती है अक्सर देर से,
मगर शब्दों के उलट-फेर से,
बनाती है १०० बहाने, लगती है मुझे मनाने,
कहती है घर से मैं निकली हूँ सबेर से,
बचते-बचाते आई मुश्किलों के घेर से,
रखते हैं घर की चाबी, मेरे भैया मेरी भाभी,
अपनों से करके अनबन,
मिलने आती हूँ गैर से,
ताले की जब -जब चाबी है खोई,
अश्कों से साथ मैं से दिल हूँ रोई,
जब कुछ नहीं सुझा तो कूद आई मुण्डेर से......

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