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Friday, June 22, 2012

ख्वाब आँखों के

ख्वाब आँखों के धीरे - धीरे छोटे हो गए,
तमाम लिबास ओढ़े कई मुखोटे हो गए,
बदल चला है समय, दुनिया दारी का,
कि अब इंसान बिन-पेंदी के लोटे हो गए,
ऐसे में कितना - कौन लडेगा भ्रष्टाचारों से,
जब सिक्के सारे अपने देश के खोटे हो गए,
घर में रखे हैं करोडो, मगर पेट भरता नहीं,
दो कौड़ी के चोर भी बड़े मोटे हो गए.......

6 comments:

  1. निवेदिता श्रीवास्तवJune 22, 2012 at 2:22 PM

    बहुत खूब !!!

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  2. अरुन शर्माJune 22, 2012 at 2:28 PM

    धन्यवाद निवेदिता जी

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  3. Kailash SharmaJune 22, 2012 at 3:47 PM

    बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  4. अरुन शर्माJune 22, 2012 at 4:49 PM

    धन्यवाद SIR

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  5. Reena MauryaJune 22, 2012 at 7:52 PM

    बहुत सुन्दर रचना..
    :-)

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  6. अरुन शर्माJune 23, 2012 at 11:22 AM

    धन्यवाद रीना जी

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