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आइये आपका हृदयतल से हार्दिक स्वागत है

Sunday, May 20, 2012

चल दिए

बर्बाद किया मुझको खुद संवर के चल दिए,
मुठ्ठी में सारी खुशियाँ मेरी भर के चल दिए,
मेरे पैरों के लिए बक्शी काँटों से बुनी चादर,
खुद फूलों की गली से गुज़र के चल दिए,
लगा कर मुझको गलत संगत ज़माने की,
बनाकर अजनबी मुझको सुधर के चल दिए,
जिन्दा हूँ अब तक जख्मों के हौंसलों से,
पहले जख्म दिए फिर उन्हीसे डर के चल दिए,
गिरती हैं बूंदें पलकों से मेरी धीरे - धीरे,
यूँ आँखों को आंशुयों से धोकर के चल दिए....

2 comments:

  1. Reena MauryaMay 21, 2012 at 8:23 PM

    bahut badiya rachana..
    sundar prastuti....

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  2. अरुन शर्माMay 22, 2012 at 1:58 PM

    बहुत बहुत शुक्रिया

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