मत्तगयन्द सवैया
आदि अनादि अनन्त त्रिलोचन ओम नमः शिव शंकर बोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें
सर्प गले तन भस्म मले शशि शीश धरे करुणा रस घोलें,
भांग धतूर पियें रजके अरु भूत पिशाच नचावत डोलें
रूद्र उमापति दीन दयाल डरें सबहीं नयना जब खोलें
आल्हा छंद
गड़ गड़ करता बादल गर्जा, कड़की बिजली टूटी गाज
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार
डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
सन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
पलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार
डगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार
दोनों रचनाएँ बहुत अच्छी लगी .अनुप्रास अलंकार से सजीं छंद बहुत सुन्दर है .आल्हा में कैसे फिट हुआ ,प्रकाश डाले अच्छा लगेगा
ReplyDeletelatest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुतियां....
ReplyDeleteदोनों छंद बहुत अच्छे लगे,सुंदर प्रस्तुति,,,बधाई
ReplyDeleteRecent post: एक हमसफर चाहिए.
सुन्दर रचना, सार्थक संदेश..
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुतियां-
ReplyDeleteबढ़िया चित्रण
शुभकामनायें प्रियवर
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक 30 जून 2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा अरुण जी
ReplyDeleteविंडो 7 , xp में ही उठायें विंडो 8 का लुफ्त
विंडो 7 को upgrade करने का तरीका
सुन्दर मोहक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट रचनाएँ । सुन्दर छंद ।
ReplyDeleteसन सन करती चली हवाएं, कुदरत हो बैठी नाराज
ReplyDeleteपलक झपकते प्रलय हो गई, उजड़े लाखों घर परिवार
पल में साँसे रुकी हजारों, सह ना पाया कोई वार
प्रिय अनंत जी ...बहुत प्रभावी और वास्तविकता के दर्शन कराती रचना ...सच में जिम्मेदार हम ही तो है
आभार
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर प्रस्तुतियां,शुभकामनायें.
ReplyDeleteअरून जी उत्कृष्ट रचना के लिएः बधाई !!
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ReplyDeleteडगमग डगमग डोली धरती, अम्बर से आई बरसात
घना अँधेरा छाया क्षण में, दिन आभासित होता रात
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मे
गजब का ज्वारीय आवेग लिए है यह रचना उद्दाम वेगवती धारा सी .हाँ मानव जनित हैं ये आपदाएं मनमोहन कुसूरवार हैं जो हाथ पे हाथ धरे बैठे रहे .करते रहे इंतज़ार बादल के फटने का .एक दिन ऐसे ही कोई भारत पे मिसायल एटमी भी फोड़ देगा .ॐ शान्ति .
शुभप्रभात
ReplyDeleteभोले भण्डारी की कृपा आप पर हमेशा बनी रहे .....
आनन फानन में उठ नदियाँ, भरकर दौड़ीं जल भण्डार
इस भारी विपदा के केवल, हम सब मानव जिम्मेदार
बिल्कुल .... 100% सच ...... सार्थक अभिव्यक्ति .....
और हार्दिक शुभकामनायें
उम्दा
ReplyDeleteकुशल कारगिरी लेखन में
भोले भण्डारी की कृपा हमेशा आप पर बनी रहे
बहुत ही उत्कृष्ट रचना अनंत जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति अरुण जी........
ReplyDeleteबहुत खूब ... हर विधा में मास्टरी कर रहे हैं आप ...
ReplyDeleteलाजवाब हैं दोनों ही छंद ...
बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/