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Monday, June 3, 2013

कुछ दोहे

ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव अंक २६ वें में सम्मिलित दोहे.





जंगल में मंगल करें, पौधों की लें जान
उसी सत्य से चित्र है, करवाता पहचान

धरती बंजर हो रही, चिंतित हुए किसान
 
बिन पानी होता नहीं, हराभरा खलिहान
 
छाती चटकी देखिये, चिथड़े हुए हजार
 अच्छी खेती की धरा, निर्जल है बेकार
 
पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल । 
मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल

पड़ते छाले पाँव में, जख्मी होते हाथ
बर्तन खाली देखके, फिक्र भरे हैं माथ
 
खाने को लाले पड़े, वस्त्रों का आभाव
फिर भी नेता जी कहें, हुआ बहुत बदलाव 

तरह तरह की योजना, में आगे सरकार
अपना सपना ही सदा, करती है साकार

तरह तरह की योजना, सदा बनाते लोग
 अपना सपना ही सदा, करती है साकार

11 comments:

  1. रविकरJune 3, 2013 at 3:24 PM

    बहुत बढ़िया -
    शुभकामनायें -

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  2. sanny chauhanJune 3, 2013 at 5:07 PM

    सुंदर प्रस्तुति अरुण जी
    internet download manager के साथ dailymotion के विडियो कैसे डाउनलोड करें

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  3. abhishek shuklaJune 3, 2013 at 8:32 PM

    BEHTAREEN PRASTUTI.......

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  4. महेन्द्र श्रीवास्तवJune 3, 2013 at 8:58 PM

    बहुत सुंदर, क्या कहने

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  5. धीरेन्द्र सिंह भदौरियाJune 3, 2013 at 11:46 PM

    बहुत सुंदर यथार्थ से भरी बात कहते दोहे ,,,

    recent post : ऐसी गजल गाता नही,

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  6. दिल की आवाज़June 4, 2013 at 11:58 AM

    बहुत सुन्दर दोहे अरुण जी ..... बधाई

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  7. प्रतिभा सक्सेनाJune 5, 2013 at 10:18 AM

    जाने कब से चल रहीं ,यहाँ योजना मित्र,
    खुशियों पर पाला पड़ा .धरती हुई दरिद्र !

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  8. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)June 5, 2013 at 10:57 AM

    जन-जीवन से जुड़े बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद दोहे!

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  9. शिवनाथ कुमारJune 5, 2013 at 8:33 PM

    हर एक दोहे लाजवाब ...

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  10. punita singhJune 6, 2013 at 2:07 PM

    sundar kavitaa saare dohe laazabaab-
    anant jee badhaai .

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  11. दिगम्बर नासवाJune 11, 2013 at 3:08 PM

    पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल ।
    मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल ...
    सटीक ... चित्र काव्य और भाव भी ... मानव की त्रासदी भी ...

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