ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक - ३३ के अंतर्गत शामिल मेरी दो गज़लें.
                                          
                                          ................... 1 ...................
                                          
                                          जीजा बुरा न मानो होली बता के मारा,
                                          सूरत बिगाड़ डाली कीचड़ उठा के मारा,
                                          
                                          खटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
                                          सर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,
                                          
                                          काजल कभी तो शैम्पू बिंदी कभी लिपिस्टिक,
                                          बीबी ने बैंक खाता खाली करा के मारा,
                                          
                                          अंदाज था निराला पहना था चस्मा काला,
                                          इक आँख से थी कानी मुझको पटा के मारा,
                                          
                                          गावों की छोरियों को मैंने बहुत पटाया,
                                          शहरों की लड़कियों ने बुद्धू बना के मारा ....
                                          
                                          ................... २ ...................
                                          
                                          बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
                                          मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,
                                          
                                          जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
                                          साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,
                                          
                                          उसको पता चला जब मैं हो गया दिवाना,
                                          मनमोहनी ने नस्तर मुझको रिझा के मारा,
                                          
                                          आया बहुत दिनों के मैं बाद ओ बी ओ पर
                                          ग़ज़लों के माहिरों ने मुझको हँसा के मारा
                                          
                                          तकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
                                          इसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....
                                        
                                        
                                       
                                      
                                    
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 30/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
प्रत्युत्तर देंहटाएंखटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
प्रत्युत्तर देंहटाएंसर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,..
वाह जी वाह ... गज़ब का हास्य लिए ... मस्त गज़ल है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
प्रत्युत्तर देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
very nice .
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन गज़लें,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
प्रत्युत्तर देंहटाएंतकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
प्रत्युत्तर देंहटाएंइसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....
gazal ke bindaas bolon ne ,
hamko chhakaake maaraa
प्रत्युत्तर देंहटाएंपहले पिलाई भांग ,फिर पौवा पिलाके मारा ,
जोबन के अलहड़ पन ने ,हमको छका के मारा .
aapki ye rchna bhut achchi lgi ..........aapne sch much ka hsa ke mara .....
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुन्दर हास्य रचनाएँ ... शुभकामनायें
प्रत्युत्तर देंहटाएंwaah bahut bahut sundar ..holi khub rahi yah bhi is andaz mein
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत बढ़ियाँ गजल...
प्रत्युत्तर देंहटाएं:-)
वाह भाई जी, गजल में व्यंग और हास्य पिरोना सहज नहीं है
प्रत्युत्तर देंहटाएंआपने कमाल कर दिया-सुंदर अनुभूति
बहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspot.in
में सम्मलित हों ख़ुशी होगी
बेहतरीन सुंदर हास्य गजल ,,,,,
प्रत्युत्तर देंहटाएंRecent post: होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग,
अरून भाई वाह, वाह! वहां आनन्द तो आया ही था, यहां आनन्द बढ़ गया। यही आपकी रचनाओं का जादू भी है जितना पढ़ो बढ़कर आनन्द देती हैं।
प्रत्युत्तर देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएं!
हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है.....अरून भाई
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुंदर,व्यंग और हास्य
प्रत्युत्तर देंहटाएं
प्रत्युत्तर देंहटाएंमजा आ गया बहुत सुन्दर गजल
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बहुत खूब,मारने के ढंग-बेढंग
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
प्रत्युत्तर देंहटाएंपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
सुन्दर ग़ज़लें.
प्रत्युत्तर देंहटाएंअरुण भाई , भाभी जी को जन्मदिवस की मुबारक बाद ,और आपको भी। साथ ही ये रिक्वेस्ट है की शास्त्री जी की रचना को यहाँ भी प्रकाशित करें।
प्रत्युत्तर देंहटाएंये गजलें बड़ी गुदगुदाने वाली हैं ..
प्रत्युत्तर देंहटाएंमेरी तो हँसी थम ही नहीं रही है