आल्हा छंद - 16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति
मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।
फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।
शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।
सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।
जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||
फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।
शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।
सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।
जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||
अहा, इसी छन्द में पूरा आल्हा उदल सुना है, ग़ज़ब की गेयता है इस छन्द में।
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
प्रत्युत्तर देंहटाएंआभार -
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 27/09/2013 को
प्रत्युत्तर देंहटाएंविवेकानंद जी का शिकागो संभाषण: भारत का वैश्विक परिचय - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः24 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 27.09.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
प्रत्युत्तर देंहटाएंआल्हा छंद में गेयता पूर्ण बहुत सुंदर रचना !
प्रत्युत्तर देंहटाएंनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
दादाजी ने ऊँगली थामी, शैशव चला उठाकर पाँव ।
प्रत्युत्तर देंहटाएंमानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।
फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।
शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।
सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।
जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||
अनंत की दोहावली भाव अर्थ और नवरूपकत्व लिए है बोध कथा सा सरल ज्ञान लिए है बच्चे की निश्छल मुस्कान घर का प्राण बुजुर्गों का मान लिए है।
बहुत सुन्दर .
प्रत्युत्तर देंहटाएंनई पोस्ट : एक जादुई खिलौना : रुबिक क्यूब
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।।
जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||
सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
कभी इधर भी पधारिये ,
बहुत सुंदर रचना !
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत ही सुंदर
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत ही सुंदर
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
प्रत्युत्तर देंहटाएंबचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।..
बहुत सुन्दर, सार्थक छंद ... भाव ओर गेयता का अनोखा मिश्रण लिए ...
बहुत सुन्दर बधाई
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