ओ बी ओ छंदोत्सव में प्रस्तुत पांच दोहे.
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लिखवा लाई भाग में, गिट्टी गारा रेह ।
झुलस गई है धूप में, तपकर कोमल देह ।।
प्यास बुझाती बैठकर, नैनों को कर बंद ।
कुछ पानी की बूंद का, रोड़ी लें आनंद ।।
रोजी रोटी के लिए, भारी भरकम काम ।
भोर भरोसे राम के, सांझ भरोसे राम ।।
भय कुछ खोने का नहीं, ना पाने की चाह ।
कार्य कार्य बस कार्य में, जीवन हुआ तबाह ।।
जितना किस्मत से मिला, उतने में संतोष ।
ना खुशियों की लालसा, ना कष्टों से रोष ।।
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अरुन शर्मा अनन्त
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झुलस गई है धूप में, तपकर कोमल देह ।।
प्यास बुझाती बैठकर, नैनों को कर बंद ।
कुछ पानी की बूंद का, रोड़ी लें आनंद ।।
रोजी रोटी के लिए, भारी भरकम काम ।
भोर भरोसे राम के, सांझ भरोसे राम ।।
भय कुछ खोने का नहीं, ना पाने की चाह ।
कार्य कार्य बस कार्य में, जीवन हुआ तबाह ।।
जितना किस्मत से मिला, उतने में संतोष ।
ना खुशियों की लालसा, ना कष्टों से रोष ।।
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अरुन शर्मा अनन्त
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आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24 .01.2014) को "बचपन" (चर्चा मंच-1502) पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत ही सुन्दर दोहे लिखे हैं भाई जी , चित्र को शब्द दे दिए , चित्र जीवंत हो उठा हो जैसे ..
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे !
प्रत्युत्तर देंहटाएंनई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
जीवन का दर्शन, वास्तविकता के संग।
प्रत्युत्तर देंहटाएंबढ़िया -
प्रत्युत्तर देंहटाएंआभार -