बिखरा है टूटा सारा, सामान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            आया है मेरे घर फिर, तूफ़ान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            
                                          
                                          
                                            लुट कर पहले खुद फिर,सबकुछ लुटा गया, 
                                          
                                          
                                            चाहा है मेरे दिल ने, नुकसान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            
                                          
                                          
                                            जालिम वो जाजिब, है अपनी ओर खींचता,
                                          
                                          
                                            लगता है बदला वो, बेईमान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            
                                          
                                          
                                            उरियां है सारा जीवन, बेजान सा लगे,
                                          
                                          
                                            रूठा है मेरा मुझसे, भगवान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            
                                          
                                          
                                            दूरी की डोर नादिर है, गांठ दरमियाँ,
                                          
                                          
                                            लगती हैं दिल राहें, सुनसान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            
                                          
                                          
                                            नैना हैं तेरे चाकू, दें घाव जब चले,  
                                          
                                          
                                            लगता है लेकर छोड़ेंगे, जान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            
                                          
                                          
                                            बाजीचा हूँ, तेरी हांथों का नचा मुझे,
                                          
                                          
                                            जिन्दा हूँ, मैं हूँ फिरभी,बेजान इन दिनों,
                                          
                                          
                                            
                                          
                                          
                                            
 जाजिब-आकर्षक , उरियां-शून्य, नादिर-दुर्लभ,
                                            बाजीचा-खिलौना 
                                          
                                         
                                        
                                       
                                      
                                    
बहुत बढ़िया ||
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया रविकर सर
Deleteवाह,,,बहुत खूब,,अरुन जी,,,
ReplyDeleteresent post : तड़प,,,
धन्यवाद धीरेन्द्र सर
Deleteबहुत खूब अरुण जी !
ReplyDeleteशुक्रिया शालिनी जी
Deleteसुन्दर रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई
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