बस नींद भरी रात उधार मांगता हूँ,
दिल के लिए जज़्बात उधार मानता हूँ,
कोई तोड़ जाये जो होंठो से मेरे चुप्पी,
कुछ लफ़्ज़ों की सौगात उधार मानता हूँ,
मुमकिन नहीं है फिर तसल्ली के वास्ते,
गूंगे लबों पे इक बात उधार मांगता हूँ,
सांसो की चाल थोड़ी धीमी पड़ गयी है,
कुछ दिन जीने के हालात उधार मांगता हूँ,
फुटपाथ पर बसे कुछ भूंखे पेटों को,
थोड़ी दाल थोड़े भात उधार मांगता हूँ...........
दिल के लिए जज़्बात उधार मानता हूँ,
कोई तोड़ जाये जो होंठो से मेरे चुप्पी,
कुछ लफ़्ज़ों की सौगात उधार मानता हूँ,
मुमकिन नहीं है फिर तसल्ली के वास्ते,
गूंगे लबों पे इक बात उधार मांगता हूँ,
सांसो की चाल थोड़ी धीमी पड़ गयी है,
कुछ दिन जीने के हालात उधार मांगता हूँ,
फुटपाथ पर बसे कुछ भूंखे पेटों को,
थोड़ी दाल थोड़े भात उधार मांगता हूँ...........
कोई तोड़ जाये जो होंठो से मेरे चुप्पी,
ReplyDeleteकुछ लफ़्ज़ों की सौगात उधार मानता हूँ,...
बहुत खूब ... लाजवाब शेर है आपकी इस गज़ल का ... मज़ा आ गया अरुण जी ...
वाह--
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
रविकर SIR दिगंबर SIR आप दोनों का स्नेह मिला, बड़ी प्रसन्नता हुई. शुक्रिया
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