बिखरे हुए पन्ने किताबों के आगे,
जिंदगी रुक गयी हिसाबों के आगे,
सवालों के पीछे सवालों के तांते,
उलझी जवानी जवाबों के आगे,
जीने में जिद्दोजेहद हो गयी है,
सुधरे हुए हारे खराबों के आगे,
कोई चोट देकर कोई चोट खाकर,
सब लेटे पड़े हैं शराबों के आगे,
आँखों में सजाये जिसे बैठे सभी हैं,
मंजिल नहीं है उन ख्वाबों के आगे.......
जिंदगी रुक गयी हिसाबों के आगे,
सवालों के पीछे सवालों के तांते,
उलझी जवानी जवाबों के आगे,
जीने में जिद्दोजेहद हो गयी है,
सुधरे हुए हारे खराबों के आगे,
कोई चोट देकर कोई चोट खाकर,
सब लेटे पड़े हैं शराबों के आगे,
आँखों में सजाये जिसे बैठे सभी हैं,
मंजिल नहीं है उन ख्वाबों के आगे.......
nice
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया SIR
ReplyDeletesunder..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDelete:-)
शुक्रिया माधुरी जी , शुक्रिया रीना जी
ReplyDeleteसुंदर शब्द संयोजन...
ReplyDeleteशुक्रिया पल्लवी जी
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