ख़ुशी से हंसते-हंसते लब, मुस्कुराना भूल आये हैं,
आज हम अपने ही घर का, ठिकाना भूल आये हैं,
यादों के सब लम्हे , यादों से मिटाकर हम,
उसके साथ वो गुजरा, जमाना भूल आये हैं,
बुझाकर रख गई जब वो, सुहाने साथ बीते पल,
सुलगता यादों का वो पल छिन, जलाना भूल आये हैं,
लगी जब चोट हकीकत की, जग गई नींद से आँखें,
बंद आँखों पर ख्वाबों को, सजाना भूल आये हैं,
उसे खुशहाल रखना, इस दिवाने दिल की आदत थी,
अब उसकी खातिर अपने अश्क, बहाना भूल आये हैं....
आज हम अपने ही घर का, ठिकाना भूल आये हैं,
यादों के सब लम्हे , यादों से मिटाकर हम,
उसके साथ वो गुजरा, जमाना भूल आये हैं,
बुझाकर रख गई जब वो, सुहाने साथ बीते पल,
सुलगता यादों का वो पल छिन, जलाना भूल आये हैं,
लगी जब चोट हकीकत की, जग गई नींद से आँखें,
बंद आँखों पर ख्वाबों को, सजाना भूल आये हैं,
उसे खुशहाल रखना, इस दिवाने दिल की आदत थी,
अब उसकी खातिर अपने अश्क, बहाना भूल आये हैं....
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १०/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं |
ReplyDeleteसुन्दर प्रेमपगी रचना...
ReplyDelete:-)
वाह ,,,,,लाजबाब सूंदर प्रस्तुति ,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: दोहे,,,,
मुस्कुराइए....मत भूलिए मुस्कुराना.
ReplyDeleteसुन्दर रचना
बधाई.
अनु