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बुधवार, 20 जून 2012

दो कदम का सफ़र

दो कदम का सफ़र,  जो दिलों तक चला,
मैं फिर तन्हा अकेला मुश्किलों तक चला,
बेचैनी मिल गयी सुर्ख बहती हवा से,
मैं दर्द -वो- गम से बनी मंजिलों तक चला,
समय चलता रहा आगे- आगे मेरे,
मैं पीछे - पीछे उम्रभर काफिलों तक चला,
ढूंढते - ढूंढते तेरे साये को मैं,
जश्न में  डूबे हुए, महफिलों तक चला.....
भर गया बाहँ में मुझे दरिया मगर,
मैं मर कर भी साहिलों तक चला......

3 टिप्‍पणियां:

  1. दिलबाग विर्क20 जून 2012 को 8:47 pm

    आपकी पोस्ट कल 21/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें

    चर्चा - 917 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  2. ब्लॉ.ललित शर्मा22 जून 2012 को 6:30 am

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    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  3. संगीता स्वरुप ( गीत )22 जून 2012 को 12:22 pm

    बहुत खूब

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
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