पैमाना नज़रों का छलकने में देर है,
यहाँ रात और वहाँ हो गयी सबेर है,
आँखों में नींद कबसे बैठी है मुहं बनाये,
सपनो से हो गयी जबसे इसकी बेर है,
दीवाने बढ रहे हैं हर रोज़ नए - नए,
ऐसे में नहीं अब, पुरानो की खैर है,
रिश्तों की अहमियत बदली है इस तरह,
पराया हुआ है अपना और अपना गैर है.....
यहाँ रात और वहाँ हो गयी सबेर है,
आँखों में नींद कबसे बैठी है मुहं बनाये,
सपनो से हो गयी जबसे इसकी बेर है,
दीवाने बढ रहे हैं हर रोज़ नए - नए,
ऐसे में नहीं अब, पुरानो की खैर है,
रिश्तों की अहमियत बदली है इस तरह,
पराया हुआ है अपना और अपना गैर है.....
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार आपका ||
Sir धन्यवाद मेहरबानी
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