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Friday, May 4, 2012

जान की खातिर

वो बहुत माहिर है दिलों के खेल का शातिर भी है,
बाद दिल के खतरा अब जान की खातिर भी है,
मुझमे छोड़ा नहीं कुछ बस एक यादों के शिवा, 
 
जिस्म में बाकी साँसों के लिए काफिर भी है,
जिससे बच कर भटक रहा हूँ दर-बदर,
वही मेरे साथ हर सफ़र का
मुसाफिर भी है....

2 comments:

  1. मुकेश पाण्डेय चन्दनMay 4, 2012 at 2:38 PM

    bahut khoob !
    www.bebkoof.blogspot.com

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  2. Arun SharmaMay 4, 2012 at 2:43 PM

    धन्यवाद

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