रात बनके करवट जिस्म तोड़ती है,
किसीके अनजबी ख्यालों से जोड़ती है,
सुबह जब घूँघट रोशनी का ओढ़ती है,
मुझे यादों की तन्हा राह में छोड़ती है,
वक़्त है की कब से बदलता नहीं,
गुज़री बातें दिनों को वापस मोड़ती है....
किसीके अनजबी ख्यालों से जोड़ती है,
सुबह जब घूँघट रोशनी का ओढ़ती है,
मुझे यादों की तन्हा राह में छोड़ती है,
जिससे रिश्ता तोड़ बैठा हूँ दिल का,
वही साथ लहू के मुझमे दौड़ती है,वक़्त है की कब से बदलता नहीं,
गुज़री बातें दिनों को वापस मोड़ती है....
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