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Thursday, May 3, 2012

धागा प्यार का


धागा प्यार का अगर यूँ उलझता नहीं,
इस जुस्तजू को मैं कभी समझता नहीं,
आंशुओं के यूँ रोज़ न आने की खबर होती,
बनकर बदल जो खुद मैं बरसता नहीं,
रातें बनकर अँधेरा जो फैली ना होती,
कोई उन्जालों के खातिर तरसता नहीं.

2 comments:

  1. AmitAagMay 3, 2012 at 2:58 PM

    bahut sunder, Arun!

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  2. Arun SharmaMay 3, 2012 at 3:58 PM

    बहुत बहुत शुक्रिया अमित जी

    ReplyDelete
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