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Monday, April 16, 2012

दर्दे-दिल को उमरभर पालती जिंदगी

ख़ुशी के मौके दूर से टालती जिंदगी,
दर्दे-दिल को उमरभर पालती जिंदगी,
धकेल कर खुद को जलती आग में,
बड़े शौक से खुद को उबालती जिंदगी,
कि झोंके ने आशियाना उजाड़ डाला,
बिखरे तिनकों को संभालती जिंदगी,
बैठ कर फुर्सत में एक दिन यूँ ही,
भार जख्मों का तौलती जिंदगी,
फैला रेत का कारवां मिलो तलक,
भार के मुट्ठी रेत फिसालती जिंदगी,
इंतज़ार करते-२ नयी सुबह कि,
रात आँखों में ढालती जिंदगी,
रूठे-2 से क्यूँ लोग मुझसे रहते हैं,
वजह इस बात की खंगालती जिंदगी.

5 comments:

  1. M VERMAApril 16, 2012 at 6:57 PM

    बहुत खूब

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  2. Kailash SharmaApril 16, 2012 at 7:37 PM

    सुन्दर प्रस्तुति...

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  3. रजनी मल्होत्रा नैय्यरApril 16, 2012 at 9:30 PM

    bahut hi prerit aur bhavpurn rachna.........

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  4. Sunil KumarApril 16, 2012 at 10:12 PM

    बहुत खूब क्या बात है मुबारक हो .........

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  5. expressionApril 17, 2012 at 10:00 PM

    वाह...............

    बेहद खूबसूरत रचना.............
    दिल को छू गयी

    अनु

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