फूलों के जख्म से सीना हुआ है छलनी,
ऐसे में धार अब काँटों की नहीं चलनी,
चाहत का जहाँ मुक्कमल नहीं था होना,
लगता है जिंदगी साँसों से नहीं पलनी,
उल्फत में तोडके रिश्तों के सारे बंधन,
ये अधूरी दास्ताँ अब मुझको नहीं खलनी,
मुट्ठी में बांधकर कौन रेत रख सका,
कसते ही हांथो को ये रेत है फिसलनी,
बेकार जीने की उम्मीद दिल में रखना,
तूफानी इस हवा में कश्ती नहीं संभलनी,
इंसानों की फितरत मौत से है मिलती-जुलती,
जिस्म से जान भी है धोके से निकलनी.
ऐसे में धार अब काँटों की नहीं चलनी,
चाहत का जहाँ मुक्कमल नहीं था होना,
लगता है जिंदगी साँसों से नहीं पलनी,
उल्फत में तोडके रिश्तों के सारे बंधन,
ये अधूरी दास्ताँ अब मुझको नहीं खलनी,
मुट्ठी में बांधकर कौन रेत रख सका,
कसते ही हांथो को ये रेत है फिसलनी,
बेकार जीने की उम्मीद दिल में रखना,
तूफानी इस हवा में कश्ती नहीं संभलनी,
इंसानों की फितरत मौत से है मिलती-जुलती,
जिस्म से जान भी है धोके से निकलनी.
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