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Saturday, April 14, 2012

प्यार को कफ़न बना लिया

तुझे प्यार करने का जो मन बना लिया,
जमाने को कसम से दुश्मन बना लिया,
कौन मार दे मुझे, ये तक खबर नहीं,
डर से घबराया खुदका बदन बना लिया,
समझ के फूल चुने कांटे इतने,
कि दिल में जख्मो का एक चमन बना लिया,
बुझती चिंगारी ने जलाया घर मेरा ,
तुझे सपने में जो दुल्हन बना लिया,
पी-पी के बहते अश्कों का पानी,
कुछ दिन जीने का साधन बना लिया,
लगी ठोकर जब, तो पता चला कि ,
मैंने पत्थरों से अपना आँगन बना लिया,
बहते लहू ही इस बात का साबुत है
तन को जख्मों का उत्पादन बना लिया,
पास जो भी था लुटा कर मैंने,
दिल कि बिमारी को ही धन बना लिया,
कोशिशें नाकाम रही तुझे भुलाने की,
जहन में यादों का यूँ बंधन बना लिया,
खुदा माना तेरे प्यार को जिंदगी भर,
मरते वखत प्यार को कफ़न बना लिया.....

4 comments:

  1. संजय भास्करApril 15, 2012 at 8:29 AM

    बहुत अच्छी लगी आप की रचना, धन्यवाद

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  2. Arun SharmaApril 15, 2012 at 12:26 PM

    धन्यवाद शुक्रिया संजय जी

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  3. AmitAagApril 16, 2012 at 11:03 AM

    ...bahut sunder likha hai Arun!

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  4. expressionApril 17, 2012 at 10:04 PM

    बहुत सुंदर................

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