चोरी हुआ यूँ दिल तन की दुकान से,
मुझको बुरा बनाया, मेरी जुबान से,
शोर भी मचाया मांगी थी मदद भी ,
मगर कोई नहीं निकला अपने मकान से,
खायी है मैंने ठोकर हर रोज़ रौशनी में,
चलना सिखा दिया अंधेरों ने ध्यान से,
मैंने खिलाफ पाया मेरे ही मेरे दिल को,
तबियत बिगड़ गयी दिल के बयान से,
पलकें सोंच से मेरी जो ज़रा झपकी,
इतने में भर गया कोई मुझे निशान से,
मुझको बुरा बनाया, मेरी जुबान से,
शोर भी मचाया मांगी थी मदद भी ,
मगर कोई नहीं निकला अपने मकान से,
खायी है मैंने ठोकर हर रोज़ रौशनी में,
चलना सिखा दिया अंधेरों ने ध्यान से,
मैंने खिलाफ पाया मेरे ही मेरे दिल को,
तबियत बिगड़ गयी दिल के बयान से,
पलकें सोंच से मेरी जो ज़रा झपकी,
इतने में भर गया कोई मुझे निशान से,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteधन्यवाद (SIR)
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