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Friday, April 20, 2012

चोरी हुआ यूँ दिल तन की दुकान से

चोरी हुआ यूँ दिल तन की दुकान से,
मुझको बुरा बनाया,  मेरी जुबान से,
 
शोर भी मचाया मांगी थी मदद भी ,
मगर कोई नहीं निकला अपने मकान से,
 
खायी है मैंने ठोकर हर रोज़ रौशनी में,
चलना सिखा दिया अंधेरों ने ध्यान से,
मैंने खिलाफ पाया मेरे ही मेरे दिल को,
तबियत बिगड़ गयी दिल के बयान से,
पलकें सोंच से मेरी जो ज़रा झपकी,
इतने में भर गया कोई मुझे निशान से,

2 comments:

  1. Kailash SharmaApril 20, 2012 at 2:58 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  2. Arun SharmaApril 20, 2012 at 3:30 PM

    धन्यवाद (SIR)

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