मिट्टी से निर्मित इस तन में,
एक तुम्हीं केवल जीवन में,
अंतस में प्रिय विद्यमान तुम,
तुम ही साँसों में धड़कन में,
अधरों पर तुम मुखर रूप से,
अक्षर अक्षर संबोधन में,
सुखद मिलन की स्मृतियों में,
दुखद विरह की इस उलझन में,
मधुर क्षणों में तुम्हीं उपस्थित,
तुम्हीं वेदना की ऐठन में,
प्रखर प्रेम में पूर्ण तरह हो,
तुम हर छोटी सी अनबन में,
मानसपटल की स्थिररता में,
और तुम्हीं तुम व्याकुल मन में,
तुम्हीं कल्पना में भावों में,
तुम्हीं सम्मिलित हो लेखन में....
एक तुम्हीं केवल जीवन में,
अंतस में प्रिय विद्यमान तुम,
तुम ही साँसों में धड़कन में,
अधरों पर तुम मुखर रूप से,
अक्षर अक्षर संबोधन में,
सुखद मिलन की स्मृतियों में,
दुखद विरह की इस उलझन में,
मधुर क्षणों में तुम्हीं उपस्थित,
तुम्हीं वेदना की ऐठन में,
प्रखर प्रेम में पूर्ण तरह हो,
तुम हर छोटी सी अनबन में,
मानसपटल की स्थिररता में,
और तुम्हीं तुम व्याकुल मन में,
तुम्हीं कल्पना में भावों में,
तुम्हीं सम्मिलित हो लेखन में....
बेहद खुबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना !!
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteमैं
Happy Birth Day "Taaru "
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-08-2014) को "चालें ये सियासत चलती है" (चर्चा मंच 1714) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावुक गजल
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है
हम बेमतलब क्यों डर रहें हैं ----
बहुत अच्छी प्रेम कविता।
ReplyDeleteमनीषा जैन
बहुत अच्छी प्रेम कविता।
ReplyDeleteमनीषा जैन
सुखद मिलन की स्मृतियों में,
ReplyDeleteदुखद विरह की इस उलझन में,
...वाह...बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...