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आइये आपका हृदयतल से हार्दिक स्वागत है

रविवार, 24 जून 2012

अपने आपे से

बाहर आता हूँ मैं जब भी, अपने आपे से,
निकल आते हैं कुछ शब्द दिल के खाते से,
जतन किये हैं बहुत, कई जोड़ भी लगाये हैं,
पर बारिश रूकती नहीं कभी टूटे हुए छाते से,
वो दौर और था जब लोग जुबाँ पर बिक गए,
अब जंग कोई भी जीती जाती नहीं है पांसे से,
मैं तुझे अपना समझ, समझाता हूँ मगर,
तू गौर तबल कर मेरी बात, इक गैर के नाते से.......

4 टिप्‍पणियां:

  1. Rajesh Kumari25 जून 2012 को 4:19 pm

    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
    चर्चामंच पर की जायेगी

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  2. कमल कुमार सिंह (नारद )26 जून 2012 को 7:48 am

    बहुत सुन्दर

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  3. S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')26 जून 2012 को 3:13 pm

    बहुत सुंदर...

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  4. lokendra singh rajput27 जून 2012 को 12:15 am

    वाह मजा आ गया साहब

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
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