न दिल कोई चाहत, न मुझको कुछ पसंद,
चल-चल के हौले-हौले धड़कन भी गयी बंद,
उलझी हुई पहेली, मोहोब्बत की तू सहेली,
दोहा सजाऊँ तुझपे या उतारूँ तुझपे छंद,
सोंच-२ लिखता हूँ डरता भी हूँ कलम से,
गलती से बन ना जाए बदनाम पंक्ति चंद,
कश्ती लेजाऊँ किसी और फिर शहर में,
हवा के तेज झोकें हो जायें थोडा मंद....
चल-चल के हौले-हौले धड़कन भी गयी बंद,
उलझी हुई पहेली, मोहोब्बत की तू सहेली,
दोहा सजाऊँ तुझपे या उतारूँ तुझपे छंद,
सोंच-२ लिखता हूँ डरता भी हूँ कलम से,
गलती से बन ना जाए बदनाम पंक्ति चंद,
कश्ती लेजाऊँ किसी और फिर शहर में,
हवा के तेज झोकें हो जायें थोडा मंद....
No comments:
Post a Comment
आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर