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आइये आपका हृदयतल से हार्दिक स्वागत है

Saturday, March 31, 2012

मुस्कुराते ही

1. मुस्कुराते ही जखम सारे खिल पड़ते हैं,
तभी होंठ वहीँ पर मेरे सिल पड़ते हैं,
बहुत चाह कि तुझे यादों से मिटा दूँ
मगर,
मेरे लम्हे तेरी यादों से मिल पड़ते हैं,
हाले-दिल अब मुझसे बयां नहीं होता,
कभी कभी गहरे सदमे से हिल पड़ते हैं,
जान जाए या फिर जाऊं कोमा में, 
कोई बताये कि कैसे दौरे दिल पड़ते हैं,






2. रात सारी-सारी दिन भी सारा-सारा,
मैं भटकता रहा यूँ ही मारा-मारा,
सुखा गला सांस जिस्म से अटकी,
इश्क का मिला पानी खारा-खारा,
सुझाये कुछ भी, कोई तो उपाए,
 मैं जीता कर भी हूँ हारा-हारा,

1 comment:

  1. RaindropMarch 31, 2012 at 1:50 PM

    Hi I quite liked the sentiments you have captured in your writings....but somewhere I feel you are getting trapped in trying to rhyme the couplets. I had a conversation with Gulzar ji...and this is what he had to say about rhyming words filling our heads....if you wish you can read it at http://vandananatu.blogspot.in/2008/08/my-dear-friend-anagha-is-doing-project.html

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