


Thursday, February 9 2023
गीत: नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए
गीत:-
गुण अवगुण के मध्य भिन्नता को समझाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
गुण अवगुण के मध्य भिन्नता को समझाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
अनहितकारी
है परिवर्तन भाषा और विचारों
में,
कड़वाहट अपनों के प्रति ही भरी हुई परिवारों में।
संबंधो के मीठे फल का स्वाद चखाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
कड़वाहट अपनों के प्रति ही भरी हुई परिवारों में।
संबंधो के मीठे फल का स्वाद चखाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
अंधकार
से घिरे हुए हैं अंतर्मन अति
मैला है,
अहंकार, लालच, कामुकता का विष नस में फैला है।
सदाचार, व्यवहार, मनुजता को अपनाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
अहंकार, लालच, कामुकता का विष नस में फैला है।
सदाचार, व्यवहार, मनुजता को अपनाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
मलिन
आत्मा अंतर्मन भी अंत ईश्वर
के प्रति निष्ठा,
निंदनीय कृत्यों के कारण नहीं स्मरण मान प्रतिष्ठा।
धर्मं, सभ्यता, मानवता, सम्मान बचाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
निंदनीय कृत्यों के कारण नहीं स्मरण मान प्रतिष्ठा।
धर्मं, सभ्यता, मानवता, सम्मान बचाना भूल गए।
नव पीढ़ी को मर्यादा का पाठ पढ़ाना भूल गए।।
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अरुन
शर्मा
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Monday,
September 15,
2014
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गीत
Thursday, August 28, 2014
शीघ्र प्रकाश्य "सारांश समय का"

संकलन
व
विशेषांक
‘शब्द
व्यंजना’ मासिक ई-पत्रिका
हिन्दी भाषा व साहित्य के
प्रचार-प्रसार के लिए दृढ
संकल्पित है. पत्रिका ने
लगातार यह प्रयास किया है कि
हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ
रचनाकारों के श्रेष्ठ साहित्य
से पाठकों को रू-ब-रू कराने
के साथ नए रचनाकारों को भी
मंच प्रदान करे. नियमित मासिक
प्रकाशन के साथ ही पत्रिका
समय-समय पर विधा-विशेष तथा
विषय-विशेष पर आधारित
विशेषांक भी प्रकाशित करेगी
जिससे कि उस क्षेत्र में
कार्यरत रचनाकारों की श्रेष्ठ
रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाया
जा सके. इन विशेषांक
में सम्मिलित रचनाकारों
की रचनाओं को पुस्तक रूप
में भी प्रकाशित करने का
प्रयास
होगा.
इसी
क्रम में ‘शब्द व्यंजना’ का
नवम्बर अंक ‘कविता विशेषांक’
के रूप में प्रकाशित किया
जाएगा. साथ ही, इस अंक में
सम्मिलित रचनाकारों की
अतुकांत कविताओं का संग्रह
पुस्तक रूप में भी प्रकाशित
करना प्रस्तावित
है.
पत्रिका अभी अपने शुरुआती दौर में है और व्यासायिक न होने के कारण अभी पत्रिका के पास ऐसा कोई स्रोत नहीं है जिससे पुस्तक-प्रकाशन के खर्च को वहन किया जा सके इसलिए यह कविता-संग्रह (पुस्तक) रचनाकारों से सहयोग राशि लेकर प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रस्ताव-
कविता-संग्रह में ५० रचनाकारों को सम्मिलित किया जाना प्रस्तावित है.
कविता संग्रह २५६ पेज का होगा जिसमें प्रत्येक रचनाकार को ४ पेज प्रदान किए जाएँगे.
सहयोग राशि के रूप में रचनाकार को रु० ५५०/- (५००/- सहयोग राशि + ५०/- डाक व अन्य खर्च) का भुगतान करना होगा.
प्रत्येक रचनाकार को कविता-संग्रह की ३ प्रतियाँ प्रदान की जाएँगी.
इस संग्रह में सम्मिलित होने के लिए रचनाकार अपनी १० अतुकांत कविताएँ, अपने परिचय और फोटो के साथ 5 सितम्बर तक इस ई-मेल पर भेज सकते हैं-
[email protected]
रचनाएँ भेजते समय शीर्षक ‘संकलन हेतु’ अवश्य लिखें. यह सुनिशिचित कर लें कि रचनाओं का आकर इतना हो कि ४ पेज में अधिक से अधिक रचनाएँ सम्मिलित की जा सकें. बहुत लम्बी अतुकांत रचनाएँ न भेजें.
इन १० रचनाओं में से संग्रह में प्रकाशित करने हेतु रचनाएँ चयनित की जाएँगी. शेष रचनाओं में से विशेषांक हेतु रचनाओं का चयन किया जाएगा. चयनित रचनाओं के विषय में प्रत्येक रचनाकार को सूचित किया जाएगा.
संग्रह में रचनाकार को वयानुसार स्थान प्रदान किया जाएगा.
संग्रह का लोकार्पण लखनऊ, इलाहाबाद अथवा दिल्ली में किया जाएगा. इस संग्रह का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा तथा समीक्षा कराई जाएगी जिससे रचनाकारों के रचनाकर्म का मूल्यांकन हो सके. संग्रह में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन अन्य सहयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भी सुनिश्चित किया जाएगा जिसकी सूचना रचनाकार को प्रदान की जाएगी. रचनाकारों के रचनाकर्म का व्यापक प्रचार इन्टरनेट की विभिन्न साइटों और ब्लोग्स पर भी किया जाएगा.
सहयोग राशि का भुगतान रचनाकार को रचना चयन के उपरान्त करना होगा जिसके सम्बन्ध में रचनाकार को सूचना प्रदान की जाएगी.
पत्रिका अभी अपने शुरुआती दौर में है और व्यासायिक न होने के कारण अभी पत्रिका के पास ऐसा कोई स्रोत नहीं है जिससे पुस्तक-प्रकाशन के खर्च को वहन किया जा सके इसलिए यह कविता-संग्रह (पुस्तक) रचनाकारों से सहयोग राशि लेकर प्रकाशित किया जा रहा है.
प्रस्ताव-
कविता-संग्रह में ५० रचनाकारों को सम्मिलित किया जाना प्रस्तावित है.
कविता संग्रह २५६ पेज का होगा जिसमें प्रत्येक रचनाकार को ४ पेज प्रदान किए जाएँगे.
सहयोग राशि के रूप में रचनाकार को रु० ५५०/- (५००/- सहयोग राशि + ५०/- डाक व अन्य खर्च) का भुगतान करना होगा.
प्रत्येक रचनाकार को कविता-संग्रह की ३ प्रतियाँ प्रदान की जाएँगी.
इस संग्रह में सम्मिलित होने के लिए रचनाकार अपनी १० अतुकांत कविताएँ, अपने परिचय और फोटो के साथ 5 सितम्बर तक इस ई-मेल पर भेज सकते हैं-
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इन १० रचनाओं में से संग्रह में प्रकाशित करने हेतु रचनाएँ चयनित की जाएँगी. शेष रचनाओं में से विशेषांक हेतु रचनाओं का चयन किया जाएगा. चयनित रचनाओं के विषय में प्रत्येक रचनाकार को सूचित किया जाएगा.
संग्रह में रचनाकार को वयानुसार स्थान प्रदान किया जाएगा.
संग्रह का लोकार्पण लखनऊ, इलाहाबाद अथवा दिल्ली में किया जाएगा. इस संग्रह का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाएगा तथा समीक्षा कराई जाएगी जिससे रचनाकारों के रचनाकर्म का मूल्यांकन हो सके. संग्रह में सम्मिलित रचनाकारों की रचनाओं का प्रकाशन अन्य सहयोगी पत्र-पत्रिकाओं में भी सुनिश्चित किया जाएगा जिसकी सूचना रचनाकार को प्रदान की जाएगी. रचनाकारों के रचनाकर्म का व्यापक प्रचार इन्टरनेट की विभिन्न साइटों और ब्लोग्स पर भी किया जाएगा.
सहयोग राशि का भुगतान रचनाकार को रचना चयन के उपरान्त करना होगा जिसके सम्बन्ध में रचनाकार को सूचना प्रदान की जाएगी.
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अरुन
शर्मा
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August 28,
2014
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Friday, August 22, 2014
एक तुम्हीं केवल जीवन में
मिट्टी
से निर्मित इस तन
में,
एक तुम्हीं केवल जीवन में,
अंतस में प्रिय विद्यमान तुम,
तुम ही साँसों में धड़कन में,
अधरों पर तुम मुखर रूप से,
अक्षर अक्षर संबोधन में,
सुखद मिलन की स्मृतियों में,
दुखद विरह की इस उलझन में,
मधुर क्षणों में तुम्हीं उपस्थित,
तुम्हीं वेदना की ऐठन में,
प्रखर प्रेम में पूर्ण तरह हो,
तुम हर छोटी सी अनबन में,
मानसपटल की स्थिररता में,
और तुम्हीं तुम व्याकुल मन में,
तुम्हीं कल्पना में भावों में,
तुम्हीं सम्मिलित हो लेखन में....
एक तुम्हीं केवल जीवन में,
अंतस में प्रिय विद्यमान तुम,
तुम ही साँसों में धड़कन में,
अधरों पर तुम मुखर रूप से,
अक्षर अक्षर संबोधन में,
सुखद मिलन की स्मृतियों में,
दुखद विरह की इस उलझन में,
मधुर क्षणों में तुम्हीं उपस्थित,
तुम्हीं वेदना की ऐठन में,
प्रखर प्रेम में पूर्ण तरह हो,
तुम हर छोटी सी अनबन में,
मानसपटल की स्थिररता में,
और तुम्हीं तुम व्याकुल मन में,
तुम्हीं कल्पना में भावों में,
तुम्हीं सम्मिलित हो लेखन में....
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अरुन
शर्मा
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August 22,
2014
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Monday, July 21, 2014
झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद"
झाँसी
की रानी पर आधारित 'अखंड
भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक
में सम्मिलित मेरी एक रचना.
हार्दिक आभार भाई अरविन्द
योगी एवं सामोद भाई जी
का.
सन
पैंतीस नवंबर उन्निस, लिया
भदैनी में अवतार,
आज धन्य हो गई धरा थी, हर्षित था सारा परिवार,
एक मराठा वीर साहसी, 'मोरोपंत' बने थे तात,
धर्म परायण महा बुद्धिमति, 'भागीरथी' बनी थीं मात.
आज धन्य हो गई धरा थी, हर्षित था सारा परिवार,
एक मराठा वीर साहसी, 'मोरोपंत' बने थे तात,
धर्म परायण महा बुद्धिमति, 'भागीरथी' बनी थीं मात.
मूल
नाम मणिकर्णिका प्यारा, लेकिन
'मनु' पाया लघु-नाम,
हे भारत की लक्ष्मी दुर्गा, तुमको बारम्बार प्रणाम
चार वर्ष की उम्र हुई थी, खो बैठी माता का प्यार
शासक बाजीराव मराठा, के पहुँचीं फिर वह दरबार,
हे भारत की लक्ष्मी दुर्गा, तुमको बारम्बार प्रणाम
चार वर्ष की उम्र हुई थी, खो बैठी माता का प्यार
शासक बाजीराव मराठा, के पहुँचीं फिर वह दरबार,
अधरों
के पट खुले नहीं थे, लूट लिया
हर दिल से प्यार ,
पड़ा पुनः फिर नाम छबीली, बही प्रेम की थी रसधार,
शाला में पग धरा नहीं था , शास्त्रों का था पाया ज्ञान
भेद दिया था लक्ष्य असंभव, केवल छूकर तीर कमान,
पड़ा पुनः फिर नाम छबीली, बही प्रेम की थी रसधार,
शाला में पग धरा नहीं था , शास्त्रों का था पाया ज्ञान
भेद दिया था लक्ष्य असंभव, केवल छूकर तीर कमान,
गंगाधर
झाँसी के राजा, वीर मराठा संग
विवाह,
तन-मन पुलकित और प्रफुल्लित,रोम-रोम में था उत्साह,
शुरू किया अध्याय नया अब, लेकर लक्ष्मीबाई नाम,
जीत लिया दिल राजमहल का, खुश उनसे थी प्रजा तमाम
तन-मन पुलकित और प्रफुल्लित,रोम-रोम में था उत्साह,
शुरू किया अध्याय नया अब, लेकर लक्ष्मीबाई नाम,
जीत लिया दिल राजमहल का, खुश उनसे थी प्रजा तमाम
एक
पुत्र को जन्म दिया पर, छीन
गए उसको यमराज,
तबियत बिगड़ी गंगाधर की, रानी पर थी टूटी गाज,
दत्तक बेटा गोद लिया औ, नाम रखा दामोदर राव,
राजा का देहांत हुआ उफ़, जीवन भर का पाया घाव,
तबियत बिगड़ी गंगाधर की, रानी पर थी टूटी गाज,
दत्तक बेटा गोद लिया औ, नाम रखा दामोदर राव,
राजा का देहांत हुआ उफ़, जीवन भर का पाया घाव,
अट्ठारह
सौ सत्तावन में , झाँसी की
भड़की आवाम,
सीना धरती का थर्राया, शुरू हुआ भीषण संग्राम,
काँप उठी अंग्रेजी सेना, रानी की सुनकर ललकार,
शीश हजारों काट गई वह, जैसे ही लपकी तलवार,
सीना धरती का थर्राया, शुरू हुआ भीषण संग्राम,
काँप उठी अंग्रेजी सेना, रानी की सुनकर ललकार,
शीश हजारों काट गई वह, जैसे ही लपकी तलवार,
डगमग
डगमग धरती डोली, बिना चले
आंधी तूफ़ान,
जगह जगह लाशें बिखरी थीं, लाल लहू से था मैदान,
आज वीरता शौर्य देखकर, धन्य हुआ था हिन्दुस्तान,
समझ गए अंग्रेजी शासक, क्या मुश्किल औ क्या आसान,
जगह जगह लाशें बिखरी थीं, लाल लहू से था मैदान,
आज वीरता शौर्य देखकर, धन्य हुआ था हिन्दुस्तान,
समझ गए अंग्रेजी शासक, क्या मुश्किल औ क्या आसान,
शक्ति-स्वरूपा
लक्ष्मी बाई , मानों दुर्गा
का अवतार
आजादी की बलिवेदी पर, वार दिए साँसों के तार
अमर रहे झांसी की रानी, अमर रहे उनका बलिदान,
जब तक होंगे चाँद-सितारे, तब तक होगी उनकी शान...
आजादी की बलिवेदी पर, वार दिए साँसों के तार
अमर रहे झांसी की रानी, अमर रहे उनका बलिदान,
जब तक होंगे चाँद-सितारे, तब तक होगी उनकी शान...
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अरुन
शर्मा
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Monday,
July 21,
2014
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Wednesday, June 4, 2014
ग़ज़ल : मुग्धकारी भाव आखर अब कहाँ
मुग्धकारी
भाव आखर अब कहाँ,
प्रेम निश्छल वह परस्पर अब कहाँ,
मात गंगा का किया आँचल मलिन,
स्वच्छ निर्मल जल सरोवर अब कहाँ,
रंग त्योहारों का फीका हो चला,
सीख पुरखों की धरोहर अब कहाँ,
सभ्यता सम्मान मर्यादा मनुज,
संस्कारों का वो जेवर अब कहाँ,
सांझ बोझिल दिन ब दिन होती गई,
भोर वह सुखमय मनोहर अब कहाँ...
प्रेम निश्छल वह परस्पर अब कहाँ,
मात गंगा का किया आँचल मलिन,
स्वच्छ निर्मल जल सरोवर अब कहाँ,
रंग त्योहारों का फीका हो चला,
सीख पुरखों की धरोहर अब कहाँ,
सभ्यता सम्मान मर्यादा मनुज,
संस्कारों का वो जेवर अब कहाँ,
सांझ बोझिल दिन ब दिन होती गई,
भोर वह सुखमय मनोहर अब कहाँ...
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शर्मा
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Wednesday,
June 04,
2014
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Labels: ग़ज़ल
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