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Friday, September 19, 2014

ग़ज़ल : मौत के सँग ब्याह करके


देह का घर दाह करके,
पूर्ण अंतिम चाह करके,

जिंदगी ठुकरा चला हूँ,
मौत के सँग ब्याह करके,

खूब सुख दुख ने छकाया,
उम्र भर गुमराह करके,

प्रियतमा ने पा लिया है,
मुझको मुझसे डाह करके,

पूर्ण हर कर्तव्य आखिर,
मैं चला निर्वाह करके,

पुछल्ला :-
यदि ग़ज़ल रुचिकर लगे तो,
मित्र पढ़ना वाह करके,

4 comments:

  1. madhu singhSeptember 19, 2014 at 5:44 PM

    बहुत खूब बेहतरीन ग़ज़ल

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  2. रूपचन्द्र शास्त्री मयंकSeptember 19, 2014 at 8:28 PM

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-09-2014) को "हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे" (चर्चा मंच 1742) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. sushma 'आहुति'September 20, 2014 at 7:29 AM

    behtreen gajal....

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  4. kuldeep thakurSeptember 20, 2014 at 10:07 AM

    सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 22/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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