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आइए आपका ह्रदयतल से स्वागत है

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

कुछ दोहे

सर्वप्रथम ह्रदय लुटे, बाद नींद औ ख्वाब ।
प्रेम रोग सबसे अधिक, घातक और ख़राब ।१।

धीमी गति है स्वास की, और अधर हैं मौन ।
प्रश्न ह्रदय अब पूछता, मुझसे मैं हूँ कौन ।२।

जब जब जकडे देह को, यादों की जंजीर ।
भर भर सावन नैन दो, खूब बहायें नीर ।३।

रुखा सूखा भाग में, कष्ट निहित तकदीर ।
करनी मुश्किल है बयां, व्यथित ह्रदय की पीर ।४।

जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।५।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

कुछ दोहे

प्रेम दिवस में मस्त हो, भूल गए माँ बाप ।
त्रुटियों का आभास ना, और न पश्चाताप ।१।

बदली संस्कृति सभ्यता, बदला है अंदाज ।
संबंधो पर गिर रही, परिवर्तन की गाज ।२।

मैली मन की भावना, दूषित हुए विचार ।
है क्षणभंगुर आजकी, नव पीढ़ी का प्यार ।३।

आजादी है नाम की, नाम मात्र गणतंत्र ।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षड़यंत्र ।४।

हुआ मान सम्मान का, बंधन है कमजोर ।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर ।५।

मानव मस्ती मौज औ, मय की मद में चूर ।
अपने ही करने लगे, जख्मों को नासूर ।६।

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

गीत : पुलकित मन का कोना कोना

गीत

पुलकित मन का कोना कोना, दिल की क्यारी पुष्पित है.
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मिलन तुम्हारा सुखद मनोरम लगता मुझे कुदरती है,
धड़कन भी तुम पर न्योछावर हरपल मिटती मरती है,
गति तुमसे ही है साँसों की, जीवन तुम्हें समर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

चहक उठा है सूना आँगन, महक उठी हैं दीवारें,
खुशियों की भर भर भेजी हैं, बसंत ऋतु ने उपहारें,
बाकी जीवन पूर्णरूप से केवल तुमको अर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मधुरिम प्रातः सुन्दर संध्या और सलोनी रातें हैं,
भीतर मन में मिश्री घोलें मीठी मीठी बातें हैं,
प्रेम तुम्हारा निर्मल पावन पाकर तनमन हर्षित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

बसंत के कुछ दोहे

बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।
शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।

अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।
ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।

धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।
इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।

डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।
आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।

पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।
मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।

गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।
पुरवाई भी झूमकर, गाये राग बसंत ।६।

पर्व महाशिवरात्रि का, पावन और विशेष ।
होली करे समाज से , दूर बुराई द्वेष ।७।

अद्भुत दिखता पुष्प से, भौरों का अनुराग ।
और सुगन्धित बौर से, लदा आम का बाग़ ।८।

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

कुछ दोहे

ओ बी ओ छंदोत्सव में प्रस्तुत पांच दोहे.
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लिखवा लाई भाग में, गिट्टी गारा रेह ।
झुलस गई है धूप में, तपकर कोमल देह ।।

प्यास बुझाती बैठकर, नैनों को कर बंद ।
कुछ पानी की बूंद का, रोड़ी लें आनंद ।।

रोजी रोटी के लिए, भारी भरकम काम ।
भोर भरोसे राम के, सांझ भरोसे राम ।।

भय कुछ खोने का नहीं, ना पाने की चाह ।
कार्य कार्य बस कार्य में, जीवन हुआ तबाह ।।

जितना किस्मत से मिला, उतने में संतोष ।
ना खुशियों की लालसा, ना कष्टों से रोष ।।

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अरुन शर्मा अनन्त
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