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रविवार, 11 अगस्त 2013

सावन

सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,

नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,

हवा सुगंध ले उड़े यहाँ वहाँ गुलाब की,
धरा विभोर हो उठी, मिटी क्षुधा चिनाब की

रुको जरा कहाँ चले दिखा मुझे कठोरता
हजार बार चाँद को चकोर है पुकारता

विदेश में बसे पिया, सुने नहीं निवेदना
अजीब मर्ज प्रेम का, अथाह दर्द वेदना

18 टिप्‍पणियां:

  1. Shalini Kaushik11 अगस्त 2013 को 1:29 pm

    बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .

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  2. Aparna Sah11 अगस्त 2013 को 2:17 pm

    Sawan ko shabdon me gunth diya...khubsurat bhav....

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  3. कालीपद प्रसाद11 अगस्त 2013 को 2:22 pm

    बहुत सुन्दर सावन वर्णन !
    latest post नेताजी सुनिए !!!
    latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

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  4. Shalini Rastogi11 अगस्त 2013 को 4:55 pm

    सावन की ठंडी फुहार सी शीतलता देती सुन्दर कविता .. बहुत सुन्दर

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  5. धीरेन्द्र सिंह भदौरिया11 अगस्त 2013 को 7:43 pm

    रचना के दवारा सावन का बहुत सुंदर वर्णन ,,,

    RECENT POST : जिन्दगी.

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  6. Devdutta Prasoon11 अगस्त 2013 को 10:21 pm

    छोटा सा प्रभाव शाली गीत !

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  7. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक12 अगस्त 2013 को 5:04 am

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (12-08-2013) को गुज़ारिश हरियाली तीज की : चर्चा मंच 1335....में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. vandana12 अगस्त 2013 को 5:45 am

    सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
    फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,

    नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
    बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,

    रोचक गीत

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  9. vandana12 अगस्त 2013 को 5:46 am

    रोचक प्रस्तुति

    प्रत्‍युत्तर देंहटाएं
  10. राजेंद्र कुमार12 अगस्त 2013 को 7:55 am

    बहुत सुन्दर सावन वर्णन,भावनात्मक अभिव्यक्ति.

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  11. सुशील12 अगस्त 2013 को 9:01 am

    खूबसूरत अंदाज !

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  12. shorya Malik12 अगस्त 2013 को 11:25 pm

    बहुत उम्दा भाव

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  13. दिल की आवाज़13 अगस्त 2013 को 11:54 am

    बहुत बढ़िया अरुण जी .... बधाई !

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  14. प्रवीण पाण्डेय14 अगस्त 2013 को 10:42 pm

    सावन बहता है शब्दों में।

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  15. Virendra Kumar Sharma14 अगस्त 2013 को 11:10 pm

    संक्षिप्त और सुन्दर रहा ब्लॉग प्रसारण। शुक्रिया हमारे सेतु को बिठाने के लिए।

    वाह भाषा का नियाग्रा प्रपाती प्रवाह सहज इन पंक्तियों की और ले गया -

    हिमाद्रि तुंग श्रृंग से ,प्रबुद्ध शुद्ध भारती ,

    स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती। ......

    अति सुन्दर प्रस्तुति है। आभार हमें निरंतर आदर पूर्वक ब्लॉग प्रसारण में बिठाने के लिए।

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  16. प्रसन्न वदन चतुर्वेदी16 अगस्त 2013 को 10:36 pm

    लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  17. शिवनाथ कुमार20 अगस्त 2013 को 11:27 am

    शब्द शब्द सावन में भीगा
    सुन्दर!

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  18. Reena Maurya20 अगस्त 2013 को 2:32 pm

    बहुत सुन्दर वर्णन..
    अति सुन्दर रचना...
    :-)

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