सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,
नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,
हवा सुगंध ले उड़े यहाँ वहाँ गुलाब की,
धरा विभोर हो उठी, मिटी क्षुधा चिनाब की
रुको जरा कहाँ चले दिखा मुझे कठोरता
हजार बार चाँद को चकोर है पुकारता
विदेश में बसे पिया, सुने नहीं निवेदना
अजीब मर्ज प्रेम का, अथाह दर्द वेदना
फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,
नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,
हवा सुगंध ले उड़े यहाँ वहाँ गुलाब की,
धरा विभोर हो उठी, मिटी क्षुधा चिनाब की
रुको जरा कहाँ चले दिखा मुझे कठोरता
हजार बार चाँद को चकोर है पुकारता
विदेश में बसे पिया, सुने नहीं निवेदना
अजीब मर्ज प्रेम का, अथाह दर्द वेदना
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति . आभार शाहरुख़-सलमान के क़दमों के निशान मिटाके देख .
प्रत्युत्तर देंहटाएंSawan ko shabdon me gunth diya...khubsurat bhav....
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर सावन वर्णन !
प्रत्युत्तर देंहटाएंlatest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
सावन की ठंडी फुहार सी शीतलता देती सुन्दर कविता .. बहुत सुन्दर
प्रत्युत्तर देंहटाएंरचना के दवारा सावन का बहुत सुंदर वर्णन ,,,
प्रत्युत्तर देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
छोटा सा प्रभाव शाली गीत !
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
प्रत्युत्तर देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (12-08-2013) को गुज़ारिश हरियाली तीज की : चर्चा मंच 1335....में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
प्रत्युत्तर देंहटाएंफुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,
नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,
रोचक गीत
रोचक प्रस्तुति
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर सावन वर्णन,भावनात्मक अभिव्यक्ति.
प्रत्युत्तर देंहटाएंखूबसूरत अंदाज !
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत उम्दा भाव
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत बढ़िया अरुण जी .... बधाई !
प्रत्युत्तर देंहटाएंसावन बहता है शब्दों में।
प्रत्युत्तर देंहटाएंसंक्षिप्त और सुन्दर रहा ब्लॉग प्रसारण। शुक्रिया हमारे सेतु को बिठाने के लिए।
प्रत्युत्तर देंहटाएंवाह भाषा का नियाग्रा प्रपाती प्रवाह सहज इन पंक्तियों की और ले गया -
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से ,प्रबुद्ध शुद्ध भारती ,
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती। ......
अति सुन्दर प्रस्तुति है। आभार हमें निरंतर आदर पूर्वक ब्लॉग प्रसारण में बिठाने के लिए।
लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
प्रत्युत्तर देंहटाएंशब्द शब्द सावन में भीगा
प्रत्युत्तर देंहटाएंसुन्दर!
बहुत सुन्दर वर्णन..
प्रत्युत्तर देंहटाएंअति सुन्दर रचना...
:-)