मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
दादा - दादी, नाना - नानी,
कहते बख्शो ठंडक रानी,
रविकर किरणें आनी जानी,
पावक लगती ठंडा पानी
देखो जिद मौसम ने ठानी,
बारिश करके की शैतानी,
राहें सब जानी पहचानी,
कुहरे ने कर दी अनजानी,
बंधू बोलो मीठी वानी,
सबके मन को है ये भानी.
सारी ऋतुएं जानी-पहचानी
प्रत्युत्तर देंहटाएंसब करती अपनी मनमानी
वाह वाह... अति सुन्दर...
हार्दिक आभार संध्या दी
हटाएं18/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
प्रत्युत्तर देंहटाएंधन्यवाद!
आभार आदरणीया विभा दी
हटाएंबहुत उम्दा सृजन,,,,
प्रत्युत्तर देंहटाएंrecent post हमको रखवालो ने लूटा
आभार आदरणीय धीरेन्द्र सर
हटाएंमित्रों!
प्रत्युत्तर देंहटाएं13 दिसम्बर से 16 दिसम्बर तक देहरादून में प्रवास पर हूँ!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (16-12-2012) के चर्चा मंच (भारत बहुत महान) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
ह्रदय के अन्तःस्थल से अनेक-2 धन्यवाद आदरणीय शास्त्री सर
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