अजब सी ये उलझन, कुछ अलग कशमकश है.
जहर से भी घातक मोहोब्बत का रश है.
संभल जाऊं खुद मै या, संभालूं इस दिल को.
अब नहीं जोर चलता और नहीं चलता वश है.
मेरे ही क़त्ल में मुझे दोष कहती.
बेवफा है सारी दुनिया , बेवफाई में यश है.
चला मै जहाँ से, रुका भी वही हूँ.
वही ये घडी है, वही ये बरस है.
तुझे भी तेरे जैसा साथी मिले जो,
यही दिल की इच्छा यही बस तरस है.
कैसे कहूँ क्या हालत है मेरी.
जिन्दा हूँ लेकिन जख्मी हर नस है.
कुछ भी कहे तू, है मैंने ये माना कि .
दिल तोड़ जाने की तुझमे हवस है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
प्रत्युत्तर देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार (06-08-2013) के "हकीकत से सामना" (मंगवारीय चर्चा-अंकः1329) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'