ओ बी ओ छंदोत्सव अंक ३२ में सादर समर्पित कुछ दोहे...
दो टीलों के मध्य में, सेतु करें निर्माण ।
जूझ रही हैं चींटियाँ, चाहे जाए प्राण ।1।
दो मिल करती संतुलन, करें नियंत्रण चार ।
देख उठाती चींटियाँ, अधिक स्वयं से भार ।2।
मंजिल कितनी भी कठिन, सरल बनाती चाह ।
कद छोटा दुर्बल मगर, साहस भरा अथाह ।3।
बड़ी चतुर कौशल निपुण, अद्भुत है उत्साह ।
कठिन परिश्रम को नमन, लग्नशीलता वाह ।4।
जटिल समस्या का सदा, मिलकर करें निदान ।
ताकत इनकी एकता, श्रम इनकी पहचान ।5।
दो टीलों के मध्य में, सेतु करें निर्माण ।
जूझ रही हैं चींटियाँ, चाहे जाए प्राण ।1।
दो मिल करती संतुलन, करें नियंत्रण चार ।
देख उठाती चींटियाँ, अधिक स्वयं से भार ।2।
मंजिल कितनी भी कठिन, सरल बनाती चाह ।
कद छोटा दुर्बल मगर, साहस भरा अथाह ।3।
बड़ी चतुर कौशल निपुण, अद्भुत है उत्साह ।
कठिन परिश्रम को नमन, लग्नशीलता वाह ।4।
जटिल समस्या का सदा, मिलकर करें निदान ।
ताकत इनकी एकता, श्रम इनकी पहचान ।5।
एक से बढ़ कर एक दोहे खूबसूरत भावों की अभिव्यक्ति.... बहुत सुंदर......!!
प्रत्युत्तर देंहटाएंवाःह्ह बहुत ही सुन्दर और प्रेरक दोहे .. बधाई :)
प्रत्युत्तर देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-11-2013 को चर्चा मंच पर दिया गया है
प्रत्युत्तर देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
बहुत ही अच्छा ,,सार्थक रचना..
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुभकामनायें..
:-)
खूबसूरत दोहे !
प्रत्युत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे अरुण जी ! बधाई
प्रत्युत्तर देंहटाएंनई पोस्ट तुम
शुभ प्रात:काल ! प्रेरणाप्रद दोहे हैं !!
प्रत्युत्तर देंहटाएंबढ़िया दोहे हैं प्रियवर-
प्रत्युत्तर देंहटाएंशुभकामनायें-