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सोमवार, 20 मई 2013

ग़ज़ल : कदम डगमगाए जुबां लडखडाये

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:-
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)

कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,

न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,

शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,

सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,

उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.

27 टिप्‍पणियां:

  1. महेन्द्र श्रीवास्तव20 मई 2013 को 11:39 am

    अब किसे सही माने आपको या फिर बच्चन जी को..

    बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला..
    बड़े बच्चन

    नशा शराब मे होती तो नाचती बोतल,
    मैकदे झूमते पैमानों में होती हलचल।

    छोटे बच्चन


    हाहाहहा
    बढिया रचना !

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    1. सरिता भाटिया21 मई 2013 को 1:21 pm

      हाहाहा
      बहुत खूब sir

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  • वाह ... बहुत ही बढिया

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  • कालीपद प्रसाद20 मई 2013 को 12:50 pm

    मधु, मय , हाला और मधुशाला
    यही है माया जिसने सबको भ्रम में डाला

    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postअनुभूति : विविधा
    latest post वटवृक्ष

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  • आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 22/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  • शराब नागरिको के तन,मन,धन,चिंतन और चरित्र को स्वाह कर अपराध,अनाचार की डगर पर फैँक देती है.बहुत ही बेहतरीन सन्देश.
    मानो महापुरुषों का कहना,दारू से सदा दूर रहना ।
    दारू सभी दु:खो की खान है,दारू खोती आदर मान है"

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  • दिल की आवाज़20 मई 2013 को 2:21 pm

    आदरणीय शराब ने न जाने कितने घर उजाड़े हैं लेकिन फिर भी सेवन करने वाले करते हैं ... फिर चाहे नाली में गिरे या कुए में ...

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  • bahut sundar..........

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  • प्रवीण पाण्डेय20 मई 2013 को 3:23 pm

    बहुत ही सुन्दर..

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  • युवाओं के नशे का शिकार होना. जो कल के होने वाले देश के जांबाज कर्णधार हैं आज वही सबसे ज्यादा नशे के शिकार हैं. जिनको देश की उन्नति में अपनी उर्जा लगानी थी वो आज अपनी अनमोल शारीरिक और मानसिक उर्जा चोरी, लूट-पाट और मर्डर जैसी सामाजिक कुरीतिओं में नष्ट कर रहे है.बेहतरीन संदेश.

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  • आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २ १ / ५ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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  • दिगम्बर नासवा21 मई 2013 को 12:17 pm

    शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
    नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,...

    लाजवाब शेर ... सच है नशे की लत बुरी है ... बरबाद कर देती है इंसान को ...
    कमाल के शेर हैं ...

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  • अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)21 मई 2013 को 12:29 pm

    मद्यपान निषेध पर सशक्त ग़ज़ल ....

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  • सरिता भाटिया21 मई 2013 को 1:22 pm

    बहुत बढ़िया
    पर उनको कौन सुनाए अरुण आपकी गजल
    कौन समझाए ?
    हाहा हाहा

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  • शारदा अरोरा21 मई 2013 को 4:06 pm

    बहुत ही बढ़िया अरुण जी ..

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  • Virendra Kumar Sharma21 मई 2013 को 5:41 pm

    बेहतरीन रचना शराब के दुखद सामाजिक पक्ष पर .

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  • अपनी बात को बहुत ही अच्छे शब्दों में व्यक्त किया है आपने कविता के माध्यम से.... बेहतरीन रचना....

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  • उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,

    अच्छी और उपयोगी प्रस्तुति....

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  • निहार रंजन22 मई 2013 को 6:58 am

    सुन्दर सन्देश.

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  • bahut khoob

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  • :-)

    बहुत खूब कहा.....

    अनु

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  • Virendra Kumar Sharma23 मई 2013 को 10:14 pm


    रागात्मक बढ़िया प्रस्तुति .शिक्षा देती सशक्त अभिव्यक्ति रागात्मक सन्देश सकारात्मक जीवन के लिए ....ॐ शान्ति .नशा ही करना है तो नारायणी करो न .......

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  • आदरणीय आपकी यह गज़ल निर्झर टाइम्स पर 'विधाओं की बहार...'में संकलित की गई है।
    कृपया http://nirjhar.times.blogspot.com अवलोकन करें!
    सादर

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  • Anita (अनिता)25 मई 2013 को 5:22 pm

    सही फ़रमाया आपने अरुन जी...
    ~सादर!!!

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  • बहुत खूब....
    :-)

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  • डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)5 जून 2013 को 11:01 am

    बढ़िया ग़ज़ल!

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  • makshad me kamyaab gajal

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