जान जाएगी मेरी मोहोब्बत के इस जहर में.
मै हूँ मेहमान बस एक रात का तेरे शहर में.
पा ली मोहोब्बत मगर खुद खो दिया मैंने,
थक गया चलते-चलते दर्द की इस डगर में.
देकर दिल मोहोब्बत की थी दौलत खरीदी,
बिक गया मुफ्त में, चाहत बही नहर में,
मिल गया मिटटी में में सपनो का आशियाना
डर - डर के रहता हूँ अब भी उसी कहर में.
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