छीन बैठा इश्क जिसका सांस दिल से जान है,
मौत से मेरी वही बस आज भी अनजान है।
जिंदगी भर भागता था मौत के अंजाम से,
पर रहा क़दमों तले हर रोज़ ही शमशान है।
मान हो सम्मान, आदर भाव की हो भावना,
"यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है"
छोड़ बेशक से गयी माँ तू मुझे संसार में,
आज भी माँ याद तेरा रूप ही भगवान है।
ताकती मेरी निगाहें राह जिस इंसान की,
लौट कर आया नहीं वो आ गया तूफ़ान है।
मौत से मेरी वही बस आज भी अनजान है।
जिंदगी भर भागता था मौत के अंजाम से,
पर रहा क़दमों तले हर रोज़ ही शमशान है।
मान हो सम्मान, आदर भाव की हो भावना,
"यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है"
छोड़ बेशक से गयी माँ तू मुझे संसार में,
आज भी माँ याद तेरा रूप ही भगवान है।
ताकती मेरी निगाहें राह जिस इंसान की,
लौट कर आया नहीं वो आ गया तूफ़ान है।
मर्म को छूती हुई ...
ReplyDeleteशुक्रिया शिवनाथ जी .......
ReplyDeleteदिल को छूती बेहतरीन प्रस्तुति....
ReplyDeleteRECENT POST,,,इन्तजार,,,
आदरणीय धीरेन्द्र जी धन्यवाद
ReplyDeleteमर्म भाव लिए रचना...
ReplyDeleteशुक्रिया रीना जी
Deleteछोड़ बेशक से गयी माँ तू मुझे संसार में,
ReplyDeleteआज भी माँ याद तेरा रूप ही भगवान है ..
अंदर तक छूता है ये शेर ... लाजवाब रचना है पूरी ...
शुक्रिया दिगम्बर जी
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