Saturday, July 28, 2012

आज भी अनजान है

छीन बैठा इश्क जिसका सांस दिल से जान है,
मौत से मेरी वही बस आज भी अनजान है।

जिंदगी भर भागता था मौत के अंजाम से,
पर रहा क़दमों तले हर रोज़ ही शमशान है।

मान हो सम्मान, आदर भाव की हो भावना,
"यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है"

छोड़ बेशक से गयी माँ तू मुझे संसार में,
आज भी माँ याद तेरा रूप ही भगवान है।

ताकती मेरी निगाहें राह जिस इंसान की,
लौट कर आया नहीं वो आ गया तूफ़ान है।

8 comments:

  1. शिवनाथ कुमारJuly 29, 2012 1:47 AM

    मर्म को छूती हुई ...

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  2. अरुन शर्माJuly 29, 2012 3:25 AM

    शुक्रिया शिवनाथ जी .......

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  3. dheerendraJuly 29, 2012 7:12 AM

    दिल को छूती बेहतरीन प्रस्तुति....

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  4. अरुन शर्माJuly 30, 2012 12:56 AM

    आदरणीय धीरेन्द्र जी धन्यवाद

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  5. Reena MauryaJuly 30, 2012 5:55 AM

    मर्म भाव लिए रचना...

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    1. अरुन शर्माJuly 31, 2012 10:44 PM

      शुक्रिया रीना जी

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  • दिगम्बर नासवाAugust 4, 2012 2:58 AM

    छोड़ बेशक से गयी माँ तू मुझे संसार में,
    आज भी माँ याद तेरा रूप ही भगवान है ..

    अंदर तक छूता है ये शेर ... लाजवाब रचना है पूरी ...

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    1. अरुन शर्माAugust 8, 2012 10:24 PM

      शुक्रिया दिगम्बर जी

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