Sunday, June 17, 2012

इलाज़ इश्क का

इलाज़ इश्क का कहाँ खुदा के पास है,
ये रखा हुस्न की, हर अदा के पास है,
दरवाजा इश्क का खुलता है देर से,
पर जब भी खुलता है सजा के पास है,
कोई लुटता है, तो कोई
लूटता लेता है,
बाद बचता है जो, वो मज़ा के पास है....

3 comments:

  1. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)June 17, 2012 5:03 AM

    बहुत शानदार लिखा है आपने!
    पितृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  2. अरुन शर्माJune 17, 2012 5:54 AM

    बहुत-२ धन्यवाद SIR (आशीर्वाद यूँही बनाये रखिये)

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  3. M VERMAJune 17, 2012 7:42 AM

    बहुत खूब

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