
श्रिया सरन ने ट्रोल्स को दिया जवाब: ‘ड्रिश्यम 2’ स्क्रीनिंग पर सार्वजनिक किस पर क्या कहा
एक लाल साड़ी, एक कैमरा और एक चुंबन—बस इतना काफी था
मुंबई में ‘ड्रिश्यम 2’ की स्पेशल स्क्रीनिंग के बाहर कैमरे चमके, पोज़ हुए, और उसी बीच एक छोटा-सा चुंबन वायरल बन गया। श्रिया सरन लाल साड़ी में थीं, सुनहरी झुमके, और साथ में उनके पति—रूसी उद्यमी आंद्रेई कोसोचीव—आसमानी सूट में। जैसे ही दोनों ने प्यार जताया, पापराज़ी के वीडियो-फोटो सोशल मीडिया पर पहुंचे और कमेंट बॉक्स क्रोधित चौपाल बन गए।
किसी ने लिखा—“हर बार पब्लिक में क्यों?” किसी ने कहा—“कैमरे के सामने ही क्यों? घर में करें।” लेकिन श्रिया का जवाब उतना ही शांत जितना सधा हुआ था। उन्होंने कहा, “आंद्रेई को लगता है कि मेरे खास पलों में मुझे किस करना सामान्य है, और मुझे यह खूबसूरत लगता है।” उनकी नजर में यह नैचुरल है; उनके पति के लिए तो यह सवाल ही नहीं—“किस बात की नाराज़गी?”
ट्रोलिंग बढ़ी तो क्या हुआ? श्रिया ने वही किया जो कई सितारे सीख चुके हैं—डिस्टर्ब न होना। उनके शब्दों में, “मैं खराब कमेंट्स न पढ़ती हूं, न रिएक्ट करती हूं। उनका काम लिखना है, मेरा काम उन्हें अवॉयड करना। मैं अपना काम करती हूं।” यह लाइनें केवल डैमेज कंट्रोल नहीं, एक रणनीति हैं—फोकस काम पर, शोर से दूरी।
यह कोई पहली बार नहीं था। यह कपल इवेंट्स पर स्नेह दिखाता रहा है—कभी गले लगकर, कभी हल्का-सा किस। वे इसे अपनी ‘छोटी-सी परंपरा’ मानते हैं। 2018 में शादी के बाद से दोनों मुंबई और विदेश—दोनों जगह—काफी ओपन, पर सीमाओं के साथ दिखे हैं। कल्चर का फर्क भी साफ दिखता है—रूस में सार्वजनिक स्नेह आम है; हमारे यहां इस पर नजरें उठना सामान्य है।
यह पल ‘ड्रिश्यम 2’ के जश्न के बीच आया। फिल्म में अजय देवगन, तब्बू, अक्षय खन्ना, इशिता दत्ता और रजत कपूर की कास्टिंग ने कहानी को वजन दिया। 2015 की हिट ‘ड्रिश्यम’ (जो मूल रूप से मोहनलाल की मलयालम फिल्म का हिंदी रीमेक थी) के बाद इस पार्ट ने बॉक्स ऑफिस पर 300 करोड़ से ज्यादा के वैश्विक कलेक्शन का आंकड़ा पार कर फ्रैंचाइज़ की गति बनाए रखी। इंडस्ट्री में अगले पार्ट्स को लेकर चर्चा भी गर्म है, और यही वजह है कि प्रीमियरों पर ऊर्जा और कैमरों की भीड़ दोनों बढ़ी रहती है।

मुद्दा सिर्फ स्टार्स का नहीं, सोशल मीडिया के दौर की मानसिकता का है
यह बहस ‘शोभा बनाम आज़ादी’ का पुराना एपिसोड है। भारत में पब्लिक डिस्प्ले ऑफ अफेक्शन (PDA) को लेकर कानून कहता है—अश्लीलता अपराध है (धारा 294), लेकिन ‘किस’ अपने-आप में अश्लील नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने सालों पहले साफ किया था—संदर्भ और मंशा मायने रखते हैं। यानी सार्वजनिक जगह पर हर स्नेह-इजहार गैरकानूनी नहीं होता, और न ही हर चुंबन अनुचित।
फिर विवाद क्यों? क्योंकि नियम से ज्यादा ‘नजरिया’ काम करता है। शहर-गांव, पीढ़ी, पारिवारिक परवरिश, और सोशल मीडिया की आदतें—सब मिलकर एक राय नहीं बनाते। कैमरा जब ऑन होता है, लोग खुद को नैतिक जज समझ लेते हैं। एल्गोरिद्म भी इन्हीं तीखे कमेंट्स को ऊपर धकेलता है—जो जितना उग्र, उतना वायरल।
पापराज़ी कल्चर भी इसमें पार्टनर है। इवेंट्स में सितारे कैमरों को इन्वाइट करते हैं, ब्रांड्स को एक्सपोज़र मिलता है, और पब्लिक को ग्लैमर का क्लोज़-अप। पर इस ‘एक्सेस’ की कीमत यह है कि निजी और सार्वजनिक के बीच की रेखा धुंधली रहती है। क्या रेड कार्पेट पर हर पल ‘परफॉर्म’ करने के लिए ही होता है? या कुछ पल व्यक्ति के अपने भी होते हैं? यही खींचतान असल टेंशन है।
कई सेलेब्रिटीज़ ने पिछले सालों में यही पैटर्न देखा—थोड़ा PDA, ढेर सारा शोर। कुछ ने माफी मांगी, कुछ ने समझाया, ज्यादातर ने इग्नोर किया। इग्नोर क्यों काम करता है? क्योंकि शोर को ऑडियंस चाहिए; ध्यान हटते ही वह धीमा पड़ता है। श्रिया का तरीका—नेगेटिविटी से दूरी, काम पर फोकस—यही सिखाता है।
यहां एक सांस्कृतिक परत भी है—क्रॉस-कल्चरल रिश्ते। आंद्रेई के लिए खास पलों में किस करना सेलिब्रेशन है; भारतीय दर्शक के एक हिस्से के लिए यही चीज़ ‘पब्लिक शिष्टाचार’ का सवाल बन जाती है। जब दोनों नजरिए टकराते हैं, तो संवाद जरूरी है—न कि उंगली उठाना।
अब जरा सोशल मीडिया की टेक्निकल साइड देखें। प्लेटफॉर्म्स पर ‘अत्यधिक’ कंटेंट ज्यादा फैलता है—या बहुत प्यारा, या बहुत चुभता हुआ। नतीजा: सामान्य पल भी ध्रुवीकरण का ईंधन बन जाते हैं। ऐसे में पब्लिक फिगर्स के लिए कुछ बेसिक तरीके मददगार साबित हुए हैं—कमेन्ट मॉडरेशन, ब्लॉक/म्यूट, समयबद्ध सोशल मीडिया विंडो, और एक-लाइन क्लियर पोज़िशन। श्रिया ने वही किया—सीधा, कम, और स्पष्ट।
फिल्म की बात करें, तो ‘ड्रिश्यम 2’ ने थिएटर्स में वापसी के बाद हिंदी बॉक्स ऑफिस को जो पुश दिया, वह इंडस्ट्री के मनोबल के लिए अहम था। थ्रिलर की पकड़, तब्बू-अक्षय खन्ना जैसे एक्टर्स की टकराहट, और अजय देवगन के शांत लेकिन सधे किरदार ने दर्शकों को खींचे रखा। यही वजह है कि फ्रैंचाइज़ की अगली कड़ियों पर काम की सुगबुगाहट जारी है—और ऐसे ही रेड कार्पेट पलों में कैमरे फिर चालू होंगे, सवाल भी फिर उठेंगे।
आखिर में वही मूल बात—पब्लिक फिगर होना ‘मानवीय भावनाओं’ को ऑफ-स्विच करने का कॉन्ट्रैक्ट नहीं है। हां, मंच सार्वजनिक है, इसलिए संयम की उम्मीद भी रहती है। इस संतुलन को कौन कैसे साधता है, यह व्यक्तिगत चुनाव है। श्रिया-आंद्रेई ने अपना तरीका चुना—नेचुरल रहें, और शोर से दूरी रखें। बाकियों के लिए सबक यही—कमेंट सेक्शन राय दे सकता है, चरित्र प्रमाणपत्र नहीं।