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Sunday, July 22, 2012

हम कंटीले थे

वो कोमल थे, हम कंटीले थे,


आँखें सूखीं थी, हम गीले थे,


रास्ते फूलों के, पथरीले थे,


जख्मी पग, कांटें जहरीले थे,


ढहे पेंड़ों से, पत्ते ढीले थे,


बिखरे हम, कर उसके पीले थे,


नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,


घर में बदबू थी, हम सीले थे,


हम फीके भी ,हम चमकीले थे..........

11 comments:

  1. Kailash SharmaJuly 22, 2012 at 3:56 PM

    बहुत सुन्दर ....

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  2. शारदा अरोराJuly 22, 2012 at 4:02 PM

    kuchh panktiyan to behad shandar...

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  3. शिवनाथ कुमारJuly 22, 2012 at 5:07 PM

    बहुत खूब ..
    सुंदर !

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  4. सतीश चंद्र सत्यार्थीJuly 22, 2012 at 6:17 PM

    अच्छा है...
    लिखते रहिए.. मेरी शुभकामनाएँ.

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  5. रविकर फैजाबादीJuly 22, 2012 at 7:17 PM

    मनोभाव का उम्दा प्रगटीकरण ||
    सही विचार |

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  6. dheerendraJuly 22, 2012 at 9:20 PM

    बहुत सुंदर प्रस्तुती,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,

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  7. expressionJuly 23, 2012 at 7:29 AM

    वाह.....
    बहुत सुन्दर रचना अरुण जी....
    बहुत बढ़िया.

    अनु

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  8. अरुन शर्माJuly 23, 2012 at 10:49 AM

    आप सभी का तहे दिल से अभिवादन आभार, बस अपना आशीर्वाद और स्नेह यूँ ही बनाये रखियेगा.

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  9. संजय भास्करJuly 24, 2012 at 9:05 AM

    बहुत सुन्दर अरुण जी...

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  10. Surendra shukla" Bhramar"5July 25, 2012 at 7:27 PM

    बिखरे हम, कर उसके पीले थे,


    नाजुक लब, नयना शर्मीले थे,
    अरुण जी बहुत सुन्दर जज्बात ..लेकिन चमकते ही रहें सुकून आया ... ...आभार
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  11. अरुन शर्माJuly 27, 2012 at 5:19 PM

    संजय भाई भ्रमर जी प्रसंसा हेतु विन्रम, सादर अभिवादन आप दोनों का.

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